जय किसान: गौरीशंकर वैश्य

धन्य है किसान
जिसके जीवन का
एक सा रहता है विधान
खेतों में
फसल उगाएगा
खाने भर को बचाएगा
परिवार का इलाज कराएगा
पुराना कर्ज चुकाएगा
कपड़े तथा घर का आवश्यक
सामान खरीदेगा

अबकी फसल नहीं बिकी
घर में गरीबी है टिकी
गन्ना खेत में ही जलाया
टमाटर सड़क पर विखराया
मन की व्यथा कौन जाने
वास्तविकता कौन माने
व्यापारी होता जाता है मालामाल
किसान रहता है बदहाल
किसान के खेत और मकान
होते जाते हैं छोटे
उसके जीवन से
कभी नहीं दूर होते
दिन खोटे

यक्ष प्रश्न-कब तक रहेगा अनुत्तरित
किसान का भगवान कब होगा अवतरित
कहते हैं, किसान अन्नदाता है
फिर क्यों आजीवन कष्ट पाता है
जब-जब सुनता है
जय किसान का नारा
स्वयं को भगवान समझने लगता है बेचारा
किंतु किसान नहीं है भगवान
वास्तव में
कोई और झूठ नहीं है
इसके समान

गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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