राव शिवराज पाल सिंह ‘इनायती’
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कान्हा का जन्म हो गया, कंस के कारागृह से नंद महर के पास भी पहुंच गए, सूर्य पूजन और कुंआ पूजन भी हो गया। वसुदेव जी के कुलगुरु गर्गाचार्य भी नामकरण कर कान्हा की जन्मपत्रिका भी बांच गए। अब आराध्य के दर्शन पाने भोले बाबा कब तक सब्र करते, पहुंच गए नंद बाबा के घर, वेश वही भभूति रमाए, सांपों की गल माला, डमरू बजाते, गंगा जी भी दर्शन करना चाह रही तो वह भी जटाओं से बह रही जशोदा तो देख कर ही भोंचक्की रह गई। ये कैसा बाबा है, भोजन सामग्री नहीं चाहिए, हीरे मोती सोना नही चाहिए, घोड़ा हाथी गाय नहीं चाहिए, बस लाला के दर्शन चाहिए, देखिए आगे क्या होता है…
बाबा मैं नहीं तोहि दिखाऊं
लल्ला है मेरो नन्हो सो
तोहि देख देख डर जाए
दाढ़ी मूंछ राख भभूति
गले में तेरे सांप लहराएं
बड़ी पूजा ते मैं याहे पायो
तू ना जाने कहां ते आयो
बाबा मैं नहीं तोहि दिखाऊं
बड़ो भाई खेल रह्यो बाहर
क्यों नहीं वाहे लाड़ लड़ावे
मेरे लाला पे गिरह बहुत है
जाने कौन कहां ते आवे
हीरा पन्ना सुन्नो चाहे लेले
गैयांन की कोई कमी नहीं
घोड़ा हाथी भी क्यों न मांगे
जो मांगे तोपे वाहि लुटाऊं
लाला मैं तोहि नाहीं दिखाऊं
गर्ग मुनि भी कह गए मोते
बालपने में अरिष्ट है भारी
वेश तजों या ओघड़पन को
आशीर्वचन कह दे न यहीं ते
क्यों अड्यो तू या ही जिद्द पे
बाबा मैं नहीं तोहि दिखाऊं
तब हि लल्ला रोवन लाग्यो
मैय्या भाजि वाहे संभारयो
पर चुप होवे को नाम नहीं
दर्शन देवन अब ठान लही
भोले जब जब नाम सुनावे
तब ही लल्ला चुप ह्वे जावे
आखिर मैया वाए बाहर लाई
बाबा कान्हा दिए मुस्काए दोइ
नैन नैन में दोऊ बात करत हैं
मैय्या कू भी ‘राव’ अचरज ह्वे गयो
ओघड बाबा जादू जानत नयो नयो
करि परनाम भोले बाबा चल दिए
रास लीला की मन में आस लिए