संजय अश्क
बालाघाट
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औकात से ज्यादा दुश्मन अच्छा है
किरदार में वैसा ही वज़न अच्छा है
कांटों में रह भी खिलता महकता है
गुलाब सा बनाया जीवन अच्छा है
साथ होकर ही दगा करती है दुनिया
ख़िलाफ़ रहने का है मन, अच्छा है
खलने लगी है मेरी बात अब उनको
सच है इसमें बड़ा कारण अच्छा है
कर्ण बनकर दुर्योधन का साथ देने से
ग़लत के ख़िलाफ़ हो रण अच्छा है
इंसान तो आज कोई भी अच्छा नहीं
लेकिन पास है उसके धन अच्छा है