उर आँगन में
मधु गगन ने प्रेम सुधा बरसाया
बरखा की फुहार से मेरी कनक हो गयी काया
श्रावणी राग संग
कोकिल गीत गा रही
झूम रही सरिता की लहरें कलकल सुर सुना रही
श्याम तेरे प्रेम में पागल
मैं बावली हो गयी
भक्ति भाव में मन मगन हो भ्रमण कर रही वन-वन
स्वर्णिम था साथ तुम्हारा
वातावरण से शहद टपक रहा था
मधुर प्रेम की छाँव में जीवन मेरा पल रहा था
मन के भीतर
भँवरा बन तुम गुजंन करते थे
प्रेम रंग में रंगकर मैं अधखिली सी इतराती थी
प्रेम गंध से
सुगंधित मेरा तनमय था
रिमझिम सावन की बूँदों जैसे शीतल मेरा हरपल था
भरमाया करते थे
तुम प्रियतम रुप अनेक ले-लेकर
बाँसुरी तान पर सज कर कान्हा नित नवीन लिलाऐं कर
सजल जीवन पर मेरे
तुम शोभित होते थे गोविंद
अवचेतन में प्राण बनकर बस रहे थे प्रियवर
कहाँ गये वो
दिवस रसिले, पतझरी हो गयी रात सुहानी
हाथ फैलाए जोह रही प्रतिदिन राह तुम्हारे आने की
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश