मैं ही स्वाहा मैं स्वधा: अनुराधा पाण्डेय

चाँदनी बिखरी पड़ी हो और तारे झिलमिलाएँ
आ मुझे परिरम्भ में भर, गात पर मधुमास रख दे

रश्मियों का हो सरोवर,
सद्य बैठूँ मैं नहाकर
प्रीत अंबुधि वन्द्य मसि में,
तूलिका लाना डुबाकर
भावना का चित्र तन पर,
भव्य मृदु विन्यास रख दे

आ मुझे परिरम्भ में भर, गात पर मधुमास रख दे

नत धरा से व्योम जिस क्षण,
नित्य प्रिय अभिसार रत हो
ले समद से रस प्रकृति जब,
मग्न  मन   श्रृंगार रत हो
आज तरु तल कल्पद्रुम में,
प्रीत हित रनिवास रख दे

आ मुझे परिरम्भ में भर,गात पर मधुमास रख दे

जब विरह में उठ रहे हो,
श्वास में उन्माद के क्षण
जब बढ़ी हो प्यास अतुलित,
हो सघन अवसाद के क्षण
प्राण वाही निज अधर प्रिय!
आ अधर के पास रख दे

आ मुझे परिरम्भ में भर,गात पर मधुमास रख दे

मैं निरन्तर चिर मिलन हित,
आजतक पथ ही निहारूँ
कल्पना में ही तुझे कह!
और कितना मैं विचारूं?
कर सकूँ प्रिय!चिर प्रतीक्षा,
आस हित विश्वास रख दे

आ मुझे परिरम्भ में भर, गात पर मधुमास रख दे

अनुराधा पाण्डेय