डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर राजस्थान
प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है
तेरा शुक्रिया है प्रभु तेरा शुक्रिया है
रो-रो के कहते है वृक्ष ये सारे
हम ही जगत के अंत और सहारे
निर्णय तुम्हारा है, काटो या बचालो
हरा भरा रख कर जीवन संभालो
प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है
तेरा शुक्रिया है प्रभु तेरा शुक्रिया है
हम ही तुम्हें अमृत पान कराते
औषधि देकर सबकी जान बचाते
फल फूल हवा ताज़ा हम तुम्हें देते
प्रेम रंग की खुशबू हम महकाते
प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है
तेरा शुक्रिया है प्रभु तेरा शुक्रिया है
जन जन से रिश्ता है प्यारा हमारा
शुद्ध प्राणवायु देकर जीवन संवारा
कुल्हाड़ी ,कटारी से, हमको ना काटो
सावन के महीना में, हम ही झुलाते
प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है
तेरा शुक्रिया है प्रभु तेरा शुक्रिया है
बहुत मुश्किलों से तुमने, हमको है पाला
हमें काट कर खुद को, मुसीबत में डाला
मत करो जुल्म अब, धरा रो रही है
प्राकृतिक शीतलता से दुनिया, मुक्त हो रही है
प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है
तेरा शुक्रिया है प्रभु तेरा शुक्रिया है
दिन रात एक करके काटकर रुलाया
रक्तस्राव से भीगा है तना अब हमारा
तेज आंधियों ने भी हमको है तोड़ा
धरती से अलग करके, दूर हमको छोड़ा
प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है
तेरा शुक्रिया है प्रभु तेरा शुक्रिया है
आओ बचालो हमको रक्षक हम तुम्हारे
जीने की सांसें हम ही, जीने के सहारे
लेलो प्रतिज्ञा यारो, पर्यावरण सुरक्षा का
यही एक जरिया है खुद को स्वस्थ रखने का
प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है
तेरा शुक्रिया है प्रभु तेरा शुक्रिया है