जाने कितनी सदियों बाद
ईश्वर का यह उपहार मिलता है
तपाना पड़ता है सोने की तरह खुद को
तब जाकर किसी का प्यार मिलता है
दुनिया जाने क्या मायने समझती है
इस पाक से शब्द के
हमें तो बस इतना पता है कि
यह जीवन में केवल और केवल एक बार मिलता है
माना कि मिलते होंगे
बेशुमार कीमती तोहफे सभी को
मगर उसका हमें दिए गए अपने वक्त के आगे
सब कुछ बेकार नजर आता है
इसकी कीमत का अंदाजा तो
शायद वही लगा पाता है
जो वास्तव में ही इसके होने के
सही अर्थ को समझ पाता है
इस कायनात में हर रिश्ते के साथ जुड़े
एहसास ही अनमोल उपहार हैं
फिर भी न जाने क्यूं आज हर एहसास
उपहार के रूप में बाजार में बिकता नजर आता है
नवाज़ा है जो आपने
बेशकीमती नज़राने से हमें यूं
जुबां खामोश है, शब्द बेकाबू से है मेरे कुछ इस कदर कि
खुशी में मन निहाल हुए जाता है
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश