आज कल अपनों से तोल-मोल के,
बाहर दिल खोल के बातें करते लगे हैं
अपनों से तंग, गैरों के संग होने लगे हैं
अरे मतलब की इस दुनिया में
मतलब निकाल कर छोड़ने लगे हैं,
पर जहां अपने होने हैं, वह गैर सपने होते हैं
ऊपर से हँसते रिश्ते, अंदर से खोखले होने लगे हैं
कई रूपों में प्रकट होकर प्रभु कहलाना चाहता है
अपने रंग बदल कर, अपनों को गैर कहने लगे हैं,
जल्दी करें, सीमित रिश्तों में तनाव होने लगे हैं,
पर मत भूलें, बड़े अच्छे सिर्फ़ अपने तो अपने ही हाथों से
कुछ गलतियों को सुधार लें, नहीं तो खोने लगे हैं,
देर ना हो जाए सावधानी बरतें
अपनो को नाराज़ कर कहां जाने लगे हैं,
वक्त अच्छा हो या बुरा
सही और गलत अब ज्यादा पहचानने लगे हैं
हर्षिता डावर