अमीता सिंह
रीवा, मध्यप्रदेश
अमर शहीदों के जाने का
मातम नहीं मनाते हैं
वो तो ‘शेरे हिन्द’ हैं
जो कफ़न भी भगवा
रंगवा के आते हैं
भारत माँ के ऊज्जवल
आँचल के अस्मिता
की रक्षा के लिये
अपने लहू से सिंचित,
रक्तरंजित लाल चुनरिया
माँ को पहनाते हैं
जिन हिमालय के शीश
मुकूट सा सूरज दमके,
केसर कस्तूरी की महक मिली हो
जिस केसरिया माटी में,
उस वसुंधरा के अमिट गीत
जवान अक्सर ही गुनगुनाते हैं,
वतन पर खुद को लुटाना चाहें,
जन्मभूमि को स्वर्ग से सुंदर जानें
तिरंगे में लिपटना हो अरमान जिनका,
उन वीरों को ह्रदय से नमन करते हैं!
उनकी सोती हुई आंखों में भी
सपने कुर्बानी के ही पलते हैं
मुल्क की हिफाजत के लिए
नयनों में ही वतन का नक़्शा
सजाए चलते हैं
खूब शान से लड़ें सपूत
मचाया प्रलय का तांडव
सीमा पर रक्त रंजित हुई काया
कभी पीठ नहीं दिखलाया
मौत को हंस कर अंगीकार किया
तिरंगे में लिपटने का स्वपन
वीर फौजी ने साकार किया
मरते दम तक डटे रहे वो,
ना सर अपना ना वतन का
तनिक भी झुकने दिया,
तब ही तो देश आज़ाद हुआ,
बड़े तकदीर वाले हैं, जो
वतन पर मर मिटते हैं,
सीना जिनका फौलाद सा
बाजुओं में बंदूक और सिर पर
कफ़न रखते हैं,
ऐसे जियाले तो बस भारत
में ही जन्म लेते हैं,
उनकी शहादत की बदौलत ही
हमारे घरों में शांति-अमन होते हैं
आँखें नम हैं, हम देशवासियों की,
अश्रुपुरित नयनों से श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं
शूरवीर जवान तो हमेशा
‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ ही गुनगुनाते हैं
शेर-ए-बब्बर है, वो जियाले
वो फौलाद सा सीना रखते हैं,
पहन वरमाला सा फांसी का फंदा
मुस्कराते हुए दुनिया से कूच कर जाते हैं
खाकर गोली सीने में हंसते हंसते
वतन पर अपनी जान लुटाते हैं
ये घनगर्जन सी आवाज़ गूंजाते हैं
आप भारत माँ के पावन धवल आंचल में
उगे वो सुंदर कमल-दल-पुष्प हैं जो देश के
मान, शान और अभिमान कहलाते हैं
अपनी तकदीर में तिरंगे में लिपट कर दुनिया
से विदा लेने का सम्मान लिखा कर लाते हैं
ये जियाले वीर बांकुड़ा मर कर भी अमर
हो जातें हैं, ऐसे बांके शूरवीरों को हम सब
भारतवासी श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं