कलयुग का हाहाकार बढ़े,
जब नारी पर अत्याचार बढ़े,
द्वापर में मोहन सखा हुए,
कलयुग में सखा षड्यंत्र गढ़े,
राह चलते अपहरण करते,
बढ़ता दुश्शासन का व्यवहार यहां,
बिन पाप किए ही दंड मिले,
कोई न करे स्वीकार यहां,
विष्णु का सुदर्शन चक्र नही,
न राम जी का बाण चाहिए,
न महादेव का तांडव हो,
शक्ति से प्राण चाहिए,
धरने को हाथ समस्या में,
सबके पास कटार जरूरी है,
नारी के हाथों में फिर से,
होनी तलवार जरूरी है,
इक रावण त्रेता युग में,
कलयुग में रावण जगह-जगह,
तड़पाए कहीं,तड़पे नारी,
इस युग में अब जगह-जगह,
न आते राम सिया लेने,
कलयुग में मोहन सखा नही,
कौनसी है सभा जहां पर,
द्रौपदी को रखा नही,
रावण और दुर्योधन तो,
अब हर इक घर में बसते हैं,
हैं शकुनी जैसे मामा,
कितने ही चक्रव्यूह ये रचते हैं,
कलयुग के रावण, दुश्शासन का,
फिर से संहार जरूरी है,
नारी के हाथों में फिर से,
होनी तलवार जरूरी है,
जिससे चलती दुनिया सारी,
जिससे बनता है हर समाज,
फिर क्यों बनकर रह जाती,
परदे के पीछे का गहरा राज,
लेने आजादी तोड़ बेड़ि,
जो बाजी लगा जान बैठी,
वो आजादी में आजाद नही,
पुरुषों की शान बान एंठी,
आज वहीं बेबस महिला,
पाने को मान तरसती है,
कभी जो रानी बन बरसी,
अब वो क्यों न बरसती है,
बेशक रानी न हो अबके,
झलकारी की झलकार जरूरी है,
नारी के हाथों में फिर से,
होनी तलवार जरूरी है,
कर्नाटक की चेन्नमा हो,
या झांसी की लक्ष्मीबाई,
स्वतंत्र देश करवाने को,
सबसे पहले दौड़ी आई,
दे बलिदान देशनिर्माण किया,
भारत की कितनी महिलाओं ने,
धार तलवार प्रहार किया,
तब रक्षा की शिलाओं ने,
जब-जब इस दुनिया में,
नारी के समक्ष अदावत होती है,
तब-तब तुम पाना दुनिया वालों,
नारी से बगावत होती है,
शक्ति का रूप धारण करले,
ऐसी हर नार जरूरी है,
नारी के हाथों में फिर से,
होनी तलवार जरूरी है।।
हेमकंवर