समीर द्विवेदी नितान्त
कन्नौज, उत्तर प्रदेश
जितना ज्यादा साथ निभाया
उतना लोगों ने ठुकराया
गैरों से सतर्क था हरपल,
अपनों से ही धोखा पाया
ये दुनिया मतलब परस्त है,
खुद में ही हर शख्स मस्त है,
बात समझ में तब ये आई,,
जब जीवन कुछ अस्त व्यस्त है,
कदम कदम सब ने भरमाया
सार समझ में तब यह आया
तुझे अकेला ही चलना है,
साथ न देता अपना साया
वाह रे ईश्वर तेरी माया
जिसको कोई समझ न पाया
कठपुतली सा खूब नचाया
रोज नया इक रंग दिखाया