सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश
बहुत तक़लीफ देता है
अक्सर वही रिश्ता जिसे
सहेजा जाता न जाने फिर
कितने ही अरमानों से
संवारा जाता है न जाने
कितने रंग बिरंगे स्वप्नों से
ढका जाता है फिर संस्कार
और मर्यादा के घूंघट से
बांधा जाता स्नेह विश्वास
और आस्था की डोर से
थामे रखने को उस अंतिम
सांस की उम्मीद तक फिर
अचानक
वही रिश्ता
रिक्तता से भरी एक ऐसी
परिधि छोड़ जाता
चाहकर भी वह लक्ष्मण रेखा
कातर मन पार नहीं कर पाता
ठहरा दिया जाता है अपराधी
जाने क्यूं उस पल कुछ भी
मन यह समझ नहीं पाता
हुआ क्या गुनाह हमीं से वो
जो हमें ही नज़र नहीं आता
फिर वह रिश्ता सिर्फ और
सिर्फ नाम का रिश्ता रह जाता
कुछ भी हो यादों में फिर भी
अपनी जगह बना जाता
आश्चर्य
जिनसे रिश्ता ही नहीं फिर
कोई भी तो रह जाता