रोज भटकता रहता हूँ: रामसेवक वर्मा

पग पग पर गर्दिश के बादल, मैंने इतने देखे हैं
खुशियों के सपने तुमने, अब तक जितने देखे हैं

इस दुनिया में रहते रहते, दशक बहुत से बीत गए
आंसू पीते हरदम गम के, निर्धनता में मीत गए
तुम तो रहते महलों में हो, कच्चे घर न देखे हैं
पग पग पर गर्दिश के बादल, मैंने इतने देखे हैं

अज्ञानी बन अपने पद पर, रोज भटकता रहता हूँ
पीड़ा जाने न कोई हमारी, ग़म हंस हंस के सहता हूँ
तुम तो सोते फूलों पर हो, शूल कभी न देखे हैं
पग पग पर गर्दिश के बादल, मैंने इतने देखें हैं

पता नहीं है मंजिल मुझको, न मेरा कोई ठिकाना है
जीवन के पथ पर हमको, बस आगे बढ़ते जाना है
दुनिया रोड़े लाख बिछाए, बदले में फूल ही फेंके हैं
पग पग पर गर्दिश के बादल, मैंने इतने देखे हैं

रामसेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश