नंदिता तनुजा
सुनो
आज़ इत्मिनान से पढ़ना
जो लिख रही वो फिर कहूं न कहूं
सच हो शायद कभी मैं रहूं या न रहूं…
दिल पे अपना बस हाथ रखना
तुम आईना देख यूं ही मुस्कुराते रहना…
कभी इत्तफ़ाक़न याद आये
सांसों का करार बन के साथ
सामने कभी आऊं या सपनों में
इक हसीं शाम के तेरे इंतजार में…
आँखों में अपने मुझे बंद रखना
तुम संग जुड़े एहसास यूं ही सज़ाते रहना…
मुनासिब कभी वादों को भूलना
इरादों की मुश्किल भरी ये राहें
फिक्र में छुपाये बातों को अपने
खामोश लिए लबों को तुम अपने
जुदाई-ए-लम्हों में हां साथ रखना
तुम नंदिता के एतबार बन के रहना…
सुनो,
दिल को भले मेरे ज़ार-ज़ार रखना
बस इश्क़-ए-रुहानी को बरकरार रखना…