जिसको भी देखिए वही मुझसे है कुछ खफा
सच बोलता हूँ मैं यही लगती उन्हें खता
इन्सानियत की राह पे चलना हुआ कठिन
हर उल्टा सीधा शख्स दिखे घूरता हुआ
हर राय पूछने पे जो तुम जानो, ये कहे
अपनों का ये निजाम नहीं समझूँ इसको क्या
होता रहा है साथ मेरे वाकया यही
जिसका भला किया वही मुझसे रहा खफा
खुद का कमाया धन हो तो अच्छी भी है खुशी
हक मार कर किसी का अब इतराइए तो ना
जिसमें था हौसला, वही मंजिल को पा सका
वरना हर एक शख्स रहा हिस्सा भीड़ का
समीर द्विवेदी ‘नितान्त’
कन्नौज, उत्तर प्रदेश