रेणु फ्रांसिस
इंदौर, मध्य प्रदेश
आज शर्मा मैम बाजार जा रही थीं कि उनके पास एक गाडी़ आकर रुकी और एक स्मार्ट सा लड़का गाडी़ से उतरकर उनके पास आया और कहा- आप शर्मा मैम हो ना तब सुमन ने कहा- हां लेकिन मैंने तुम्हें पहचाना नहीं, कौन हो तुम? मैम, आपको अनिल श्रीवास्तव याद है जो आपके लिये रोज फूल लाता था और आप उससे कहती थीं ये फूल मां सरस्वती की तस्वीर पर चढा़ दो फिर उसके बाद मैं दो फूल लाने लगा एक आपके लिये दूसरा फूल सरस्वती मां के लिये। तब सुमन ने कहा, हां याद आया, तुम तो पांचवी क्लास के बाद कभी मिले ही नहीं, मैंने तुम्हारे दोस्तों से पूछा भी था, सभी ने कहा- पता नहीं मैम अनिल कहा चला गया। शायद तुम शहर छोड़ कर कहीं चले गये थे। तब अनिल ने कहा मैम मेरे पापा बैंक में थे, उनका ट्रांसफर इंदौर से भोपाल हो गया था फिर पापा ने भोपाल में ही घर बना लिया था, मेरी बाकी की पढा़ई भोपाल में ही हुई।
मैम आप कैसे हो, क्या करते हो अभी भी स्कूल जाते हो या छोड़ दिया, तब सुमन ने कहा- मैं अभी भी उसी स्कूल में ही हूँ जिस स्कूल में तुम पढा़ करते थे।अनिल ने कहा- मैम मैं आपके घर आऊंगा आप उसी घर में रहतीं हैं, जहाँ मैं आपसे पढ़ने आया करता था या कहीं और घर ले लिया है, तब सुमन ने कहा मैं उसी घर में ही रह रही हूँ। तब अनिल ने कहा मैं जल्दी ही आपके घर आऊंगा बहुत सारी बातें करेंगे अभी मुझे घर जाना है।
मैंने कुछ समय पहले ही यहाँ एक मकान खरीदा है, आप आएंगी तो मुझे खुशी होगीं। इतना कह कर अनिल चला गया। सुमन भी घर आ गई।
दूसरे दिन स्कूल में शिक्षक दिवस का कार्यक्रम होने वाला था। सुमन भी थोड़ा मेकअप करके स्कूल गई और वहाँ जाकर कार्यक्रम की तैयारी करने लगी। सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी, सब बच्चे भी अपनी-अपनी जगह व्यवस्थित बैठे थे और इंतजार कर रहे थे अपने मुख्य अतिथि का।
इतने में एक बडी़ गाडी़ आकर रुकी, प्रिंसिपल उनके स्वागत में स्कूल के गेट पर उन्हें लेने गये सभी खड़े होकर और ताली बजाकर उनका स्वागत करने लगे।सुमन ने देखा ये मुख्य अतिथि तो अनिल है, जो कल उन्हें मिला था। अनिल ने उन्हें नमस्ते कहा और मंच की कुर्सी पर जा कर बैठ गया और सभी बच्चों के द्वारा किये गये कार्यक्रमों का आनन्द लेने लगा आखिर में एक बच्चा मंच पर आया और उसने अपनी बुलन्द आवाज़ में अपना भाषण शुरु किया उसने कहा-
भारत में हर साल 5 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आजादी के बाद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बने थे। जो एक महान दार्शनिक होने के साथ-साथ शिक्षक भी थे। इसलिए उनके जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, वह देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित होने वाले प्रथम भारतीय व्यक्ति भी है।
और अन्त में उसने कहा वह भी गरीब परिवार से थे मैं भी गरीब परिवार से हूँ, उन्होंने अपनी पढा़ई छात्रवृत्ति के सहारे पूरी की। मुझे छात्रवृत्ति तो नहीं मिलती पर शर्मा मैम ही है जो मुझे पिछले पांच सालों से पढा़ रही हैं। स्कूल की फीस भी वहीं दे रही है और किसी को न बताने के लिये भी मना किया है। किन्तु आज मैंने सबको बता दिया, क्योंकि अब हम लोग अब अपने गाँव जा रहे हैं। शायद अब कभी न आये। इतना कहकर वह मंच पर ही रोने लगा तो मुख्य अतिथि ने आकर उसे चुप करवाया और माइक को अपने हाथों में ले लिया और कहा- मेरा नाम अनिल श्रीवास्तव है, मैं भी इसी स्कूल का छात्र रह चुका हूँ और आज कलेक्टर बन कर आपके शहर में लौटा हूँ और आते ही कल जब बाजार में शर्मा मैम मिली बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि वह आज भी वही स्कूल में पढा़ती है, जहाँ तुम पढे़ हो तब मैंने ही आपके प्रिंसिपल सर को कहा- मै शिक्षक दिवस आप लोगों के साथ मनाना चाहता हूँ क्योंकि मैनें अपनी प्राथमिक शिक्षा आपके स्कूल और शर्मा के साथ पूरी की है, प्रिंसिपल सर ने कहा ये तो हमारे लिये सौभाग्य की बात होगी कि हमारे शहर के कलेक्टर हमारे स्कूल में मुख्य अतिथि बने। कल से ही मैं अपने स्कूल आने के लिये बेकरार हो रहा था।
तब उन्होंने बच्चे के कन्धे पर हाथ रखकर कहा- आज से तुम्हारी घर की सारी जिम्मेदारी मेरी है, मेरे घर का बगीचा बहुत बडा़ है। तुम्हारे पापा वहीं बगीचे का काम संभाल लेंगे, जैसे मेरे पापा संभालते थे और तुम्हारी मम्मी हम सबके लिये खाना बना दिया करेंगी जैसे मेरी मम्मी बनाती थीं हम सबके लिये। मैं अभी तुम्हारे मम्मी पापा से बात कर लेता हूँ तुम अभी जाकर अपने पापा को ले आओ ताकि मैं उनसे मिल लूं, जब तक यहाँ का प्रोग्राम भी समाप्त हो जायेगा। कलेक्टर महोदय ने आगे कहना शुरु किया आज से आपके स्कूल के 10 बच्चे जो बहुत गरीब परिवार से है और जो पढा़ई में होनहार हैं मैं उनकी पढा़ई का पूरा खर्च स्वयं की तनख्वाह से पूरा करुंगा जब तक वह अपनी पढा़ई पूरी नहीं कर लेते, अनिल ने जब अपनी बात समाप्त की तो पूरा स्कूल तालियों की गड़गडा़हट से गूंजने लगा। सभी कलेक्टर साहब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे।फिर कलेक्टर साहब ने अपनी जेब से दो गुलाब के फूल निकाले एक सरस्वती मां की तस्वीर के सामने रखा दूसरा शर्मा मैम के हाथ में देकर कहा- मैम आज भी इंसानियत जिंदा है आपके रुप में। आपने आज तक पता नहीं कितने बच्चों को फ्री पढा़या है बिना किसी स्वार्थ के मैं बहुत खुशनसीब हूँ, आप जैसी ममतामयी शिक्षिका ने मेरी पढा़ई की नींव रखी।
मुझे खुशी होगीं यदि आप भी मेरे साथ ही रहे, मेरे मम्मी पापा तो नहीं रहे, आप साथ रहेगी तो मुझे मेरी मां की कमी नहीं महसूस होगीं। प्लीज आप न मत कीजियेगा, क्योंकि मुझे भी मालूम हो गया है, अब आप भी अकेली ही रहती हैं।
शर्मा मैम ने शादी नहीं की थी वह अपनी मां के साथ ही रहती थी, लेकिन चार साल पहले उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। ये बात अनिल को उसके दोस्त ने बताई थी। प्लीज मैम मुझे मेरी मां वापिस मिल जायेगी। अनिल की बातें सुनकर और उसके आंसूओं को देखकर शर्मा मैम ने भी अनिल के साथ रहना मंजूर कर लिया और अनिल से मैम ने कहा- आज सही मायने में शिक्षक दिवस का सम्मान मुझे मिला है और वह गाडी़ में बैठकर अपने बच्चे के साथ रहने जाने लगी, यह देखकर सभी ने ताली बजाकर और हाथ हिलाकर मैम को विदा किया…