शब्दों से परे: प्रज्ञा अमृत

आपकी महत्ता,
पूजयतम माता
शब्दों से है परे

आप बीज अमृत ,
हम उसकी शाखाएं
आप प्रेम गीत,
हम उसकी भाषाएं

आपकी संवदेना,
आकाश सी अनन्त,
आप सूर्य हमारी,
हम बन ग्रह मंडराए

आपकी सुकोमलता
सौ जन्नत से स्निग्ध,
आपके आँचल तले,
स्वर्ग का सुख मिल जाए

आपकी कर्मठता,
के हम सब अंशमात्र
आप सागर सी गहरी,
हम बून्द बन धन्य हो जाए

आप हमारी सम्पूर्णता,
आपके बिन सब अधूरा,
सब कुछ हमने जो चाहा,
आशीर्वचनों से प्राप्त हो जाए

आप ज्वलन्त तपस्विनी,
हम उसकी ज्योति सम,
आप जीवन्त संजीवनी,
उस देवी को क्या दे हम

बस बारम्बार ये कहा करे
आपकी महत्ता,
पूजयतम माता,
शब्दों से है परे

प्रज्ञा अमृत