सीमा शर्मा’ तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश
कैसी अजीब विडंबना है
यह हुई कैसी संरचना है
जो …..!
दोस्ती के सांचे में देखो
वह दुश्मनी में ढल रहा है
जाने कैसे-कैसे चाल चलन
यह मनुष्य चल रहा है…!!
यह तजुर्बा हमारा है इस पर
कोई उंगली उठेगी भी तो क्या
यह चलन इस सदी का नहीं दोस्तों!
यह तो सदियों से चल रहा है..!
ना सोने का वक्त है उसको
ना उठने का कोई ठिकाना
रात दिन बनकर मशीन सा
खुद ही खुद को छल रहा है।
घर जलता है जब किसी का
यह अलग बात है मग़र…..
ताज्जुब इस बात का है कि!
शहर तमाम रोशनी से जल रहा है।