समीक्षा- विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल
लेखक- प्रतुल श्रीवास्तव
प्रकाशक- पाथेय प्रकाशन, जबलपुर
मूल्य- अजिल्द पृष्ठ 96, 150 रुपए
किताब के बहाने थोडी चर्चा पाथेय प्रकाशन की भी हो जाये। पाथेय प्रकाशन जबलपुर अर्थात नान प्राफिट संस्थान। राजकुमार सुमित्र जी और कर्ता धर्ता भाई राजेश पाठक का समर्पण भाव। बहुतों की डायरियों में बन्द स्वान्तः सुखाय रचित रचनाओ को साग्रह पुस्तकाकार प्रकाशित कर, समारोहपूर्वक किताब का विमोचन करवाकर हिन्दी सेवा का अमूल्य कार्य विगत अनेक वर्षों से चल रहा है। मुझे स्मरण है कि मैंने ही राजेश भाई को सलाह दी थी कि आईएसबीएन नम्बर के साथ किताबें छापी जायें, जिससे उनका मूल्यांकन किताब के रूप में सर्वमान्य हो, तो प्रारंभिक कुछ किताबों के बाद से वह भी हो रहा है। तेरा तुझ को अर्पण वाले सेवा भाव से जाने कितनी महिलाओं, बुजुर्गों जिनकी दिल्ली के प्रकाशकों तक व्यक्तिगत पहुंच नहीं होती, पाथेय ने बड़े सम्मान के साथ छापा है। विमोचन पर भव्य सम्मान समारोह किये हैं। आज पाथेय का कैटलाग विविध किताबों से परिपूर्ण है। अस्तु पाथेय को और उसके समर्पित संचालक मण्डल को वरिष्ट पत्रकार एवं समर्पित साहित्य साधक प्रतुल श्रीवास्तव जो स्वयं एक सुपरिचित साहित्यिक परिवार के वारिस हैं, उनकी असाधारण कृति “मौन” के प्रकाशन हेतु आभार और बधाई। किताब बढ़िया गेटअप में चिकने कागज पर प्रकाशित है।
अब थोड़ी चर्चा किताब के कंटेंट की। डॉ हरिशंकर दुबे जी की भूमिका आचरण की भाषा मौन पठनीय है। वे लिखते हैं छपे हुये और जो अप्रकाशित छिपा हुआ सत्य है उसे पकड़ पाना सरल नहीं होता।
बिटवीन द लाइन्स के मौन का अन्वेषण वही पत्रकार कर सकता है जो साहित्यकार भी हो। प्रतुल जी ऐसे ही कलम और विचारों के धनी व्यक्तित्व हैं। राजेश पाठक प्रवीण ने अपनी पूर्व पीठिका में लिखा है कि बोलना एक कला है और मौन उससे भी बड़ी योग्यता है। मौन एक औषधि है। समाधि की विलक्षण अवस्था है। वे लिखते हैं कि प्रतुल जी की यह कृति आत्म शक्ति, आत्म विस्वास और अंतर्मन की दिव्य ढ़्वनि को जगाने का काम करती है।
स्वयं प्रतुल श्रीवास्तव बताते हैं कि जो क्षण मुखर होने से अहित कर सकते थे उन्हें मौन सार्थक अभिव्यक्ति देता है। मौन अनावश्यक आवेगों पर नियंत्रण और संकल्प शक्ति में वृद्धि करता है। मौन के उनके अपने स्वयं के अनुभव तथा साधकों के कथन किताब में शामिल हैं। मौन के रहस्य को समझकर जीवन को तनाव मुक्त और ऊर्जावान बनाना हो तो यह किताब जरूर पढ़िये। पुस्तक में छोटे छोटे विषय केंद्रित रोचक पठनीय तथा मनन करने योग्य 28 आलेख हैं।
मौन, चुप्पी मौन नहीं, स्वाभाविक मौन छिना, मौन से ऊर्जा संग्रहण, मौन एक साधना, मौन और सृजन, चार तरह के मौन, मौन से जिव्हा परिमार्जन, मौन पर विविध अभिमत, मन के कोलाहल पर नियंत्रण, मौन से शांति-ध्यान और ईश्वर, क्या है अनहद नाद? हिन्दू धर्म में मौन का महत्व, मुस्लिम धर्म में मौन, मौन एक महाशक्ति, शब्द संभारे बोलिये, मौन की मुखरता, मौन जीवन का मूल है, मौन से प्रगट हुई गीता, मौन स्वयं से जुड़ने का तरीका, मौन का संबंध मर्यादा से, बातों से प्राप्त क्रोध बर्बाद करता है समय, मौन है मन की मृत्यु, चित्त की निर्विकार अवस्था है मौन, मौनं सर्वार्थ साधनम्, मौन की वीणा से झंकृत अंतस के तार, मौन साधना तथा उसका परिणाम तथा मौन ध्यान की ओर पहला कदम
शीर्षकों से मौन पर अत्यंत्य सहजता से सरल बोधगम्य भाषा में मौन के लगभग सभी पहलुओं पर विषद विवेचन पुस्तक में पढ़ने को मिलता है।
मौन व्रत अनेक धार्मिक क्रिया कलापों का हिस्सा होता है। हमारी संस्कृति में मौनी एकादशी हम मनाते हैं। राजनेता अनेक तरह के आंदोलनों में मौन को भी अपना अस्त्र बना चुके हैं। गृहस्थी में भी मौन को हथियार बनाकर जाने कितने पति पत्नी रूठते मनाते देखे जाते हैं। पुस्तक को पढ़कर मनन करने के बाद मैं कह सकता हूं कि मौन पर इतनी सटीक सामग्री एक ही जगह इस किताब के सिवाय अंयत्र मेरे पढ़ने में नहीं आई है। प्रतुल श्रीवास्तव जी के व्यंग्य अलसेट, आखिरी कोना, तिरछी नजर तथा यादों का मायाजाल और व्यक्तित्व दर्शन किताबों के बाद वैचारिक चिंतन की यह पुस्तक मौन उनके दार्शनिक स्वरूप का परिचय करवाती है। वे जन्मना अन्वेषक संवेदना से भरे, भावनात्मक साहित्यकार हैं। यह पुस्तक खरीद कर पढ़िये आपको शाश्वत मूल्यों के अनुनाद का मौन मुखर मिलेगा जो आपके रोजमर्रा के व्यवहार में परिवर्तनकारी शक्ति प्रदान करने में सक्षम होगा।