सोचो क्या हैं ज़िन्दगी
जब न रही ये ज़िन्दगी
आसान नहीं ये ज़िन्दगी
गर न जिये ये ज़िन्दगी
भगवान ने दी ये कमाल की किस्मत
हे मनुष्य! व्यर्थ इसे गवां मत
कर जाना है जीवन को साकार
आंधी-तूफ़ान को ठोकर मार, दे धुत्कार
माटी-से जीवन को दे नवीन आकार
सोचो क्या हैं ज़िन्दगी…
जीवन के रण-समर में है राजनीति एक दानव
है चुनौतियों का हार बनाकर विजयी हुआ हर मानव
काल जैसे समाज में है आवाज़ उठाना मुश्किल
चट्टानों की परवाह न कर, कर अपना पत्थर दिल
नव प्रभात की अरुणिमा में सफलता से जा मिल
सोचों क्या है ज़िन्दगी…
पल-पल, पग–पग सिहर उठते हैं कदम
पर हर विपत्ति को मात देने आज डटेंगें हम
इतिहास के राणा, बाई और अशोक ने चलाए तीर कमान
सत्य नाते चलो करें कुर्बान अपनी जान
स्वार्थ त्याग, बलिदान दे, यही मनुष्य की शान
सोचो क्या हैं ज़िन्दगी…
-एच के रूपा रानी