यह समय कितना कड़ा है
सामना जिससे करना पड़ा है
फूल-पत्ती, बेल बूटे उत्सवों को हैं तरसते
हर तरफ संवेदनाओ के शुभग श्रृंगार झरते
है विवश वह प्राण, जो तूफ़ान से हर पल लड़ा है
यह समय कितना कड़ा है
देखते है दूर से ही टकटकी परिजन लगाए
प्राणलेवा घुटन के विषधर हताशा ने जगाए
कुछ नहीं कर पा रहे, यह शूल सीने में गड़ा है
यह समय कितना कड़ा है
आज चांदी काटते हैं विवशताओं के लुटेरे
छल-कपट, हैवानियत ने कास दिए चहुँ ओर घेरे
और भोला आदमी चौड़े में खड़ा है
यह समय कितना कड़ा है
कुछ फरिश्ते ढाल बन लोहा समय से ले रहे है
मृत्यु को निज शक्ति-भर हर पल चुनौती दे रहे है
है नमन उनको कि जिनके हौसलों का कद बड़ा है
यह समय कितना कड़ा है
एच के रूपा रानी
एसोसिएट प्रोफेसर
ज्योति निवास कॉलेज ऑटोनॉमस
बैंगलोर