विजय झा ने शराब की तस्करी करके करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली थी और अब उसने अपने काले धन को सफेद करने के लिए एक स्कूल खोल लिया था। उसने उस स्कूल का नाम अपने इकलौते बेटे अभिज्ञान के नाम पर रखा था- ‘अभिज्ञान इंटरनेशनल स्कूल’। अभिज्ञान इंटरनेशनल स्कूल शहर का सबसे बड़ा स्कूल था।
बाईस वर्षीय अभिज्ञान और सीमा अच्छे दोस्त थे और एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। सीमा एक निम्न मध्यमवर्गीय ख़ूबसूरत युवती थी। क़रीब एक वर्ष पूर्व बीमारी के कारण उसके पिता की मौत हो गई थी। पिता की मौत हो जाने से उसके घर की माली हालत ठीक नहीं थी। इसलिए एक दिन सीमा ने अभिज्ञान से कहा – “मेरे घर के हालात तो तुम जानते ही हो। क्या तुम मुझे कहीं कोई नौकरी दिलवा सकते हो?”
हाँँ, लेकिन क्या तुम मेरे डैडी के स्कूल में पढ़ाना पसंद करोगी?” अभिज्ञान ने पूछा।
हाँँ, ज़रूर।” सीमा ने जवाब दिया।
अभिज्ञान की माँँ का देहावसान हुए दो वर्ष हो गए थे। अभिज्ञान और विजय का अधिकांश समय स्कूल में ही गुजरता था। अपने बेटे के कहने पर विजय ने सीमा को शिक्षिका के पद पर नियुक्त कर लिया।
ख़ूबसूरत सीमा को देखते ही विजय के अंदर छिपा शैतान जाग उठा। धीरे-धीरे विजय सीमा को अपने क़रीब रखने के लिए किसी ना किसी काम के बहाने अपने केबिन में बुलाने लगा और एक दिन मौक़ा देखकर सीमा का हाथ पकड़ लिया और कहने लगा- “सीमा, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँँ और शादी भी करना चाहता हूँँ। मैं अपनी सारी जायदाद तुम्हारे नाम कर दूँँगा। बदले में मुझे सिर्फ़ तुम्हारा प्यार चाहिए।”
विजय की बातें सुनकर सीमा दौलत के लालच में बह गई और मर्यादा की सीमा लाँँघते हुए विजय के आगोश में समा गई।
विजय शादी का झाँँसा देकर दो वर्षों तक सीमा का यौन शोषण करता रहा और बाद में शादी करने से साफ़ इनकार कर दिया। इसी बीच विजय के वकील ने सीमा को बताया कि विजय ने अपनी सारी संपत्ति अपने बेटे अभिज्ञान के नाम कर दी है। सीमा जानती थी कि अभिज्ञान उसे पसंद करता है और मन ही मन चाहता भी है। उसने इस बात का फ़ायदा उठाया और अभिज्ञान को अपने प्रेम जाल में फंसा लिया। जब अभिज्ञान पूरी तरह से उसके प्यार में पागल हो गया तो उसने अभिज्ञान के साथ कोर्ट में शादी कर ली और बड़ी ही चतुराई से सारी संपत्ति अपने नाम करवा ली। सारी संपत्ति की मालकिन बन जाने के बाद सीमा ने अपनी शादी की बात विजय को बता दी।
आलोक कौशिक
साहित्यकार एवं पत्रकार
मनीषा मैन्शन,
बेगूसराय, बिहार