सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश
वो जो अक्सर निकलती है
मर्यादा के गलियारों से
संस्कारों के ग़लीचों पर फिर
क़दम दर कदम चला करती है
ओढ़कर चुनर अपनी संस्कृति
और सम्मान के रंगों से रंगी
इस तरह अपने तन को वो जो
पग़ली अदब से ढका करती है
यही वो नेमत ख़ुदा की जो ढूंढे से
कहां यूं ही फिर मिला करती है
ये तो आज भी सिर्फ और सिर्फ
किसी ग़रीब के मिट्टी के बने उन
महलों में ही मिला करती है
यही वो तहज़ीब है मेरे दोस्त जो
जीने की ख़ातिर रोज मरा मरती है
कहने को ये दुनिया सजती संवरती है
पर, इसके आगे हर शय फ़ीकी लगती है