सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा उत्तर
तूफ़ान वो कैसा दर्द का था
जो हमसे होकर गुज़र गया
और ज़र्रा-ज़र्रा रेत सा फिर
ये जीवन जो बिखर गया
अपनों ने ही दिए थे ज़ख़्म
कुछ वो इस क़दर हमें कि
आँखों से रंज-ओ-ग़म भरा
था वो दरिया जो उतर गया
न चलने दिया दो क़दम हमें
मंज़िल की उस राह पर क्यों
वो वक़्त ही था ज़िन्दग़ी में
कुछ तूफ़ान ऐसे भर गया
बर्बादियों के रक्स पर अपनी
हम चुप रहे मगर फिर भी
जलती चिता अपनी का ही
वो धुआँ जो अंदर ठहर गया