डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
प्रविष्ट हुआ अब सूर्य मकर में
उड़े पतंग उन्मुक्त गगन में
देख पतंगों की ऊंचाई
हर जन का मन हर्षाए
ऐसी एक पतंग बनाएं
जो हमको भी सैर कराए
पतंग उड़े हमको भी लेकर
मन उड़न खटोला बन जाए
पेड़ों से ऊपर को जाए
धरती से अम्बर तक जाए
इस छत से उस छत पर जाए
आसमान में ये लहराए
हिचकोले जब खाती जाए
तब नीचे ये आती जाए
कोई काटे डोर है इसकी
कभी डोर काटकर आए
कागज़ डोर पतंग के जैसा
जीत का हम पताका फहराएं
थाम के डोर पतंगों की हम
चलो गगन की सैर कर आएं