डॉ. निशा अग्रवाल
शिक्षाविद, पाठयपुस्तक लेखिका
जयपुर, राजस्थान
अपनों के लिए वक्त का बहाना मत बनाओ,
दूरियां बढ़ाने की गलती, कभी ना दोहराओ।
वक्त तो एक बहता दरिया है, रुकता नहीं कभी,
पलकों में सजी यादें, फिर बन जाएं बेवजह की कमी।
जो अपने हैं तुम्हारे, उन्हें कभी ना भुलाओ
अपनों के बीच दूरी का, कभी ना सिलसिला बनाओ।
वक्त निकल जाएगा, हाथों से रेत की तरह,
ना जाने कब जिंदगी की शाम, बदल जाए एक गहरी रात की तरह।
वो लम्हे जो थे खास, कब याद बनकर रह जायेंगी,
अपनों के बीच की हठखेलियां, कभी लौटकर ना आएंगी।
जी लो उन पलों को, जो पास हैं तुम्हारे,
वक्त की इस रफ्तार में, मत छोड़ो कोई भी किनारे।
क्योंकि जब छूट जाए वक्त का हाथ, तो कुछ न बचेगा,
अपनों के संग जो प्यार है, वो केवल याद बनकर ही रहेगा।
इसलिए वक्त का बहाना, अब और ना बनाओ,
अपनों को अपना वक्त दो, पर कभी बहाने मत बनाओ।
जी लो, हँस लो आज खुलकर, केवल अपनों के संग,
वक्त की इस धारा में, बनाओ कुछ यादें, संग संग।