सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश
कहने को वो भी क्या जमाने थे
जब कोई हमसे दूर जाता था और
छोड़ने उसे पूरा परिवार ही
बस या फिर रेलवे स्टेशन तक
उसके साथ-साथ ही जाता था
उसकी जुदाई में तब आंखें सभी की
अनायास ही नम हो जाया करती थी
आज घर में एक दूसरे से बात किए
दिन सप्ताह क्या महीना बीत जाता हैं
दूर जाने का ग़म आख़िर क्या है?
अब ये ग़म भी किसी को नहीं सताता है।
चला भी जाए ग़र दुनिया से कोई अब
काफिला साथ तो जरुर जाता है मगर
सूख चले हैं जो जज़्बात सभी के
इसीलिए
आंखों में आजकल पानी नहीं आता है
हो जीवन या मृत्यु इनकी बात न पूछो
इनके सौदे आज इतने महंगे हो गए
न हो यकीन तो गौर कीजिये इस बावत
कि बिन सीजेरियन के आसानी से कोई
दुनिया में आता नहीं
वहीं दूसरा सच ये भी है दोस्तों कि अब
बिना वेंटीलेटर के भी छोड ये दुनिया
कोई जाता नहीं
आज पहचान को अपनी तरसते हैं
तलाश में इनकी इस छोर से उस छोर
सिर्फ और सिर्फ वो जो भटकते हैं
कह सकें आख़िर जिन्हें इंसान अच्छा
वो ऐसे इंसान कहां बसा करते हैं
या ख़ुदा कैसे हो पाएगी पहचान इनकी?
आज दोनों ही जो हो चलें हैं नकली
आंसू और मुस्कान भी तो उनकी