सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश
क्या ख़ूब था वह दौर कागजी भी दोस्तों!
जिसमें यादें और जज़्बात उन ख़तों में
न जाने कितने अर्से तक महफूज़ रहा करते थे।
पढ़ लेते जब भी जी में आता उन्हें क्योंकि….!!
उनमें कुछ ऐसे एहसास छुपे होते थे………..
जिनकी खात़िर अकेले में कभी
हंसते तो कभी रोते थे….!
मग़र आज वक्त के साथ देखो !
ज़माना कितना सयाना हुआ जो,
संक्षेप में सिर्फ दो लफ्जों में जज्बातों को
अपने पगला! कुछ इस तरह दिखाता है
और फिर…..!!
उम्रभर की यादों की बिसात ही क्या..?
वो तो चंद लम्हों की उन दो बातों को भी
जो दिलों दिमाग़ तक पहुंच भी नहीं पाती
उससे पहले ही एक उंगली की करामात से
बस पल भर में डिलीट बटन द्वारा
सदैव के लिए मिटाता है…………….!!!
ताज़्जुब देखिए हुज़ूर अपनी हरकतों को
आज हर फास्ट फारवर्ड विचारशील प्राणी
जज़्बात न समझे कोई हमारे…ये कहकर ..
दुनियाभर में शोर मचाता है…….
जाने क्यों सच्चाई से मुंह छुपाता है…..!!!
सच पूछिए! वो काग़जी दौर बहुत याद आता है।