सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश
ये जिंदगी जब भी ढलान से उतरे…
बस यही है दुआ रब से कि बड़ी शान से उतरे।
माना कि तेरी बज़्म से एक दिन जाना हमें पड़ेगा
वो ज़मीं चांद से हो बेहतर जहां हम से सितारे उतरें।
हों ग़म के चार दिन और जुल्मों सितम की मानिद
रहें नज़र चमन पर बहार की वो जब छूकर गुजरे।
दिन कुछ इस क़दर ढले कि उन रातों की सलवटों पर
फिर न हो थकान कोई अक्स अब न कोई दूजा उभरे।
तुझसे हर मुलाकात का अंजाम जुदाई ये तय है
देख तेरे पैर के नीचे हैं कई ख़्वाब मेरे पड़े बिखरे।