बुरी कुछ भली ज़िन्दगी
ऐसी हमको मिली ज़िन्दगी
रास्तों में भटकती हुई,
जाने गई किस गली ज़िन्दगी
साथ जब तक तुम्हारा मिला,
कदम उतने चली ज़िन्दगी
फूल बनके बिखरी हुई,
थी एक नाजुक कली ज़िन्दगी
इतनी कड़वी कभी भी न थी,
गुड़ की थी एक डली ज़िन्दगी
छाछ पीती रहीं फूँककर,
दूध से थी जली ज़िन्दगी
उम्र की शाम होने लगी,
मौत आई ढली ज़िन्दगी
ज़िन्दगी को लगाया गले,
ज़िन्दगी को छली ज़िन्दगी
मुझको तो रास आई नहीं,
समझे तुम मखमली ज़िन्दगी
-मुकेश चौरसिया
गणेश कॉलोनी, केवलारी,
सिवनी