स्पोरोपोलेनिन टेम्पलेट पर कॉपर ऑक्साइड नैनोस्ट्रक्चर के नियंत्रित विकास के ज़रिए वैज्ञानिकों ने तारे जैसी बेहद सूक्ष्म संरचना वाला एक नया तांबा-आधारित उत्प्रेरक विकसित किया है, जो फार्मास्यूटिकल्स और मैटीरियल साइंस समेत सहित क्षेत्रों में लागत कम करने और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने की क्षमता के साथ, अधिक टिकाऊ औद्योगिक रासायनिक प्रतिक्रियाओं के मार्ग की तरफ अग्रसर करता है।
हानिकारक प्रक्रियाओं को पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से बदलने की ज़रूरत को पूरा करने के लिए, वैज्ञानिक उन सामग्रियों पर काम कर रहे हैं, जो उत्प्रेरकों में हरित समाधानों की बढ़ती आवश्यकताओं को संबोधित करते हैं, और जो औद्योगिक रासायनिक प्रक्रियाओं में पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकते हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों द्वारा इस्तेमाल किए गए स्पोरोपोलेनिन टेम्पलेट पर कॉपर ऑक्साइड नैनोस्ट्रक्चर की नियंत्रित वृद्धि की एक विधि से एक “मार्निंग स्टार” संरचना बनी, जहां स्पोरोपोलेनिन और पॉलीइथाइलीनमाइन (पीईआई) सक्रियण की कटोरे के आकार की विशेषताओं के चलते, इन अद्वितीय नैनो-स्टार रूपों का संश्लेषण हुआ। इस प्रणाली की व्यवस्था, “हरित” परिस्थितियों में स्थायी रूप से उत्प्रेरण करने के लिए अनुकूलित है।
स्पोरोपोलेनिन, जिसकी बाहरी संरचना एक कटोरे जैसी होती है, एक कवर के रूप में, कॉपर ऑक्साइड छड़ों के विकास को सक्षम बनाता है, जिससे एक नैनोस्टार आकार बनता है। स्पोरोपोलेनिन की सतह को पीईआई के साथ क्रियाशील किया जाता है, जो कॉपर ऑक्साइड नैनोस्ट्रक्चर के न्यूक्लियेशन और विकास के लिए ज़रुरी अमीन ग्रुप प्रदान करता है। इस प्रकार बना उत्प्रेरक, कार्बनिक प्रतिक्रियाओं में उपयोगी है और इसका प्रयोग पर्यावरणीय उपचार, नैनोस्केल इलेक्ट्रॉनिक्स और सतह-संवर्धित रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (एसईआरएस) में किया जा सकता है। पारंपरिक उत्प्रेरकों के मुकाबले, जिनके लिए अक्सर उच्च तापमान, योजक, या कठोर सॉल्वैंट्स की ज़रुरत होती है, इस उत्प्रेरक की, बिना किसी योजक के पानी में उत्कृष्ट दक्षता है। इसके साथ ही यह पांच चक्रों में पुन: प्रयोग किया जा सकता है।
एक प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले बायोमास अपशिष्ट, बीजाणुओं को, उच्च मूल्य वाले उत्प्रेरकों की नींव के रूप में प्रयोग करके, यह नवाचार, जो नैनोस्केल 2024 में प्रकाशित हुआ था, एक महत्वपूर्ण ज़रूरत को संबोधित करते हुए, कचरे को धन में बदलने का उदाहरण पेश करता है। इसका पर्यावरण-अनुकूल संश्लेषण सतत् विकास लक्ष्यों के साथ सहजता से संरेखित होता है, जो पारंपरिक उत्प्रेरक प्रक्रियाओं से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताओं से सीधे निपटता है।