Friday, April 25, 2025
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विशेष: संविधान निर्माता से प्रेरणास्रोत तक- डॉ. अंबेडकर का व्यक्तित्व

गजेन्द्र दवे
सांचौर, जालोर

“विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्॥”

यह श्लोक जीवन के विकास की उस यात्रा को दर्शाता है जो शिक्षा से शुरू होकर अंततः सुख और शांति की ओर ले जाती है। डॉ. भीमराव अंबेडकर इस श्लोक के भावों का मूर्त रूप हैं। उन्होंने शिक्षा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया, विनम्रता से जीवन जिया, पात्रता से सम्मान और अधिकार प्राप्त किए, और अंततः समाज के धर्म- यानी कर्तव्य का निर्वहन करते हुए लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन लाया। उनका जीवन न केवल संघर्ष की कहानी है, बल्कि आत्म-विकास, आत्मबल और समाज सेवा का प्रेरणादायक मार्गदर्शन भी है।

व्यक्तित्व विकास के क्षेत्र में डॉ. अंबेडकर का जीवन हमारे लिए एक आदर्श है। उन्होंने जिन मूल्यों और सिद्धांतों को अपनाया, वे आज भी हर युवा को सशक्त और सामाजिक रूप से जागरूक नागरिक बनने की प्रेरणा देते हैं। आइए उनके जीवन से 11 ऐसी बातें जानें, जो हमारे व्यक्तित्व को निखार सकती हैं।

आत्मविश्वास का विकास

डॉ. अंबेडकर को बचपन में अनेकों बार जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। स्कूल में उन्हें अलग बैठाया जाता था, पानी तक पीने नहीं दिया जाता था। फिर भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते रहे। यह आत्मविश्वास ही था, जिसने उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षाविदों में शामिल किया।

दृढ़ संकल्प

अंबेडकर जी ने अपने जीवन की दिशा बहुत पहले ही तय कर ली थी, समाज में समानता स्थापित करना। अमेरिका और इंग्लैंड जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करना, आर्थिक और सामाजिक संघर्षों के बावजूद, उनके दृढ़ संकल्प की मिसाल है। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि अडिग निश्चय से असंभव भी संभव हो सकता है।

अनुशासन और नियमितता

विद्यार्थी जीवन से लेकर संविधान निर्माण तक, डॉ. अंबेडकर के जीवन में अनुशासन का महत्वपूर्ण स्थान रहा। लंदन में अध्ययन के दौरान वे प्रतिदिन निर्धारित समय पर पढ़ाई करते और समय का एक-एक पल सदुपयोग करते थे। उन्होंने हमें सिखाया कि अनुशासन ही सफलता की नींव है।

आत्म-सुधार की भावना

डॉ. अंबेडकर निरंतर आत्म-सुधार के पक्षधर थे। उन्होंने कानून, अर्थशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र और धर्म जैसे अनेक विषयों में गहराई से अध्ययन किया। बौद्ध धर्म में उनकी दीक्षा उनके चिंतन, शोध और आत्मिक उन्नयन का परिणाम थी। यह भी सनातन संस्कृति के मूल तत्व-ज्ञान, शांति और करुणा-की ओर उनका झुकाव दर्शाता है।

जिज्ञासु और व्यावहारिक सोच

डॉ. अंबेडकर केवल सिद्धांतों तक सीमित नहीं थे, वे व्यवहार में भी उन्हें परखते थे। एक उदाहरण है जब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविरों का दौरा किया। उन्होंने प्रत्येक स्वयंसेवक से उनकी जाति पूछी और जब देखा कि कोई भेदभाव नहीं किया गया है, तो संतुष्ट होकर लौटे। इससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने सामाजिक संपर्क और व्यावहारिक सोच को महत्व दिया।

नेतृत्व क्षमता

डॉ. अंबेडकर न केवल विचारक थे, बल्कि क्रियाशील नेता भी। उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा, दलित महासंघ जैसे संगठनों की स्थापना कर समाज के वंचित वर्ग को संगठित किया। उनका नेतृत्व लाखों लोगों को सशक्त बना गया।

संवाद की कला

वे प्रभावशाली वक्ता थे। संविधान सभा में उनके भाषण आज भी उद्धृत होते हैं। “हम आज सामाजिक और आर्थिक न्याय के युग में प्रवेश कर रहे हैं,” जैसी पंक्तियाँ उनकी दूरदर्शिता और संवाद की कुशलता को दर्शाती हैं।

साहस और निर्भीकता

डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक अन्याय, रूढ़ियों और भेदभाव के विरुद्ध खुलकर आवाज़ उठाई। वे निर्भीक रूप से अपने विचार रखते थे, भले ही वह बहुमत के विरुद्ध क्यों न हों। उनका यह साहस हमें प्रेरणा देता है कि सत्य और न्याय के लिए खड़ा होना ही असली ताकत है।

समय का मूल्य

संविधान निर्माण जैसे ऐतिहासिक कार्य के दौरान अंबेडकर ने समय का अत्यंत कुशल उपयोग किया। वे दिन-रात कार्य करते और प्रत्येक शब्द को सोच-समझकर लिखते। उनका जीवन बताता है कि समय का सदुपयोग किसी भी बड़े लक्ष्य की पूर्ति का आधार है।

संघर्ष करने की क्षमता

छुआछूत, अपमान और अस्वीकृति जैसे अनगिनत संघर्षों के बावजूद डॉ. अंबेडकर कभी रुके नहीं। उन्होंने अपने जीवन को एक मिशन की तरह जिया और हर बाधा को पार किया। उनका जीवन संदेश देता है कि संघर्ष ही सफलता की असली सीढ़ी है।

ज्ञान की निरंतर प्यास और समाज में योगदान

डॉ. अंबेडकर का जीवन ज्ञान के प्रति गहरी जिज्ञासा का प्रतीक था। उन्होंने 50,000 से अधिक पुस्तकों का संग्रह किया और अंतिम समय तक पढ़ते रहे। उनका मानना था कि “ज्ञान ही मनुष्य को सशक्त बनाता है।” वे केवल स्वयं को नहीं, बल्कि समाज को सशक्त बनाना चाहते थे।

उनकी शिक्षा की यह प्यास केवल व्यक्तिगत उन्नति तक सीमित नहीं थी। उन्होंने समाज के वंचित वर्गों के लिए आरक्षण जैसी योजनाएँ लागू कीं ताकि वे भी शिक्षा और अवसर प्राप्त कर सकें। और यहीं उनकी प्रगतिशील और सर्वसमावेशी सोच स्पष्ट होती है—उन्होंने आरक्षण को स्थायी नहीं, बल्कि हर दस वर्षों में मूल्यांकन योग्य व्यवस्था माना, ताकि समाज की आवश्यकता के अनुसार इसे संतुलित किया जा सके। यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि उनके लिए देशहित जाति, वर्ग और समुदाय से भी ऊपर था।

निष्कर्ष

“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।”- (“इस संसार में ज्ञान के समान कोई भी वस्तु पवित्र नहीं है।” भगवद्गीता)

डॉ. भीमराव अंबेडकर इस श्लोक के आदर्श प्रतीक हैं। उन्होंने अपने जीवन में ज्ञान को सर्वाधिक प्राथमिकता दी और उसके माध्यम से अपने व्यक्तित्व को ऐसा आकार दिया कि वे एक विचारधारा बन गए। उन्होंने शिक्षा, साहस, नेतृत्व, संवाद, और नैतिक मूल्यों के माध्यम से अपने जीवन को न केवल महान बनाया, बल्कि करोड़ों लोगों के लिए दिशा भी दिखाई।

उनका जीवन दर्शाता है कि यदि व्यक्ति में सीखने की ललक हो, उद्देश्य के प्रति समर्पण हो, और समाज के प्रति संवेदनशीलता हो, तो वह किसी भी परिस्थिति में असंभव को संभव बना सकता है। आज का युवा यदि डॉ. अंबेडकर के जीवन मूल्यों को आत्मसात करे, तो वह ना केवल अपने व्यक्तित्व को उत्कृष्ट बना सकता है, बल्कि एक आदर्श नागरिक के रूप में राष्ट्र निर्माण में भी योगदान दे सकता है।

डिस्क्लेमर- उपरोक्त लेख में प्रकाशित विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। ये जरूरी नहीं कि लोकराग न्यूज पोर्टल इससे सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही उत्तरदायी है।

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