मध्य प्रदेश की बिजली कंपनियों के हजारों अनुकंपा आश्रितों को विभिन्न नियमों और नीतियों में उलझा कर अनुकंपा नियुक्ति से वंचित रखा जा रहा है। उलझाऊ नियमों के कारण सैकड़ों अनुकंपा आश्रित तो नियुक्ति के इंतजार में उम्रदराज हो चुके हैं। वहीं नियुक्ति नहीं मिलने के कारण हजारों अनुकंपा आश्रितों को वित्तीय संकट के साथ ही अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
मध्य प्रदेश विद्युत मंडल तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री से मांग करते हुए कहा है कि ऊर्जा विभाग के द्वारा पूर्व में अनुकंपा नीति जारी कर कहा गया था कि 15 नवंबर 2000 से 10 अप्रैल 2012 के बीच जिनकी मृत्यु करंट लगकर हुई है, सिर्फ उनको ही अनुकंपा नियुक्ति दी जायेगी, वहीं हार्ट अटैक, कैंसर सहित अन्य बीमारियों और कारणों से मृत्यु होने पर अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जाएगी।
हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि 1 सितंबर 2000 को तत्कालीन मध्य प्रदेश विद्युत मंडल ने विद्युत विभाग की दयनीय आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए अनुकंपा नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। वहीं जब अनुकंपा नियुक्ति दिए जाने का प्रावधान लागू किया गया है तो कई बार पदों की कमी का बहाना बनाकर भी अनुकंपा नियुक्ति देने में हीलाहवाली का जाती रही।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में बिजली कंपनियों में लगभग 50 हजार पद खाली हैं, जिन पर आउटसोर्स कर्मियों से कार्य कराया जा रहा है। वहीं अब बिजली कंपनियों की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हो चुकी है तो ऐसे में सभी अनुकंपा आश्रितों को बिना शर्त अनुकंपा नियुक्ति देने से साथ ही आउटसोर्स कर्मियों का भीसंविलियन किया जाए।
तकनीकी कर्मचारी संघ के संघ के अजय कश्यप, मोहन दुबे, राजकुमार सैनी, लखन सिंह राजपूत, इंद्रपाल सिंह, दशरथ शर्मा, मदन पटेल, अमीन अंसारी, विनोद दास, संतोष पटेल, प्रकाश काछी, राजेश आदि ने ऊर्जा विभाग से मांग की है कि विद्युत मंडल और बाद में विभिन्न कंपनियों में सेवाकाल के दौरान जिन कार्मिकों की मृत्यु हुई थी, वह भी तो आपके ही कर्मचारी थे, तो फिर उनके परिजनों से कैसा बैर, ऊर्जा विभाग अनुकंपा आश्रितों के साथ मौतों का बंटवारा न करते हुए 10 अप्रैल 2012 के पूर्व जितने भी अनुकंपा आश्रित हैं उन सभी को बिना शर्त अनुकंपा नियुक्ति दी जाए।