मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि आदिवासी विकास विभाग अभी तक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की विनियमितीकरण की प्रक्रिया को लेकर कुंभकर्णी नींद में सोया हुआ है। जहां प्रदेश के अन्य सभी जिलों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की वर्ष 2017-18 तक विनियमितीकरण की प्रक्रिया को पूर्ण कर लिया गया है, जबकि जबलपुर जिले के कर्मचारी आज जब वर्ष 2022 है तब भी सिर्फ आश्वासनों का झूला झूलने मजबूर है।
संघ ने बताया कि अन्य जिलों के कर्मचारियों का वेतन जहां 18000 रुपये के लगभग हो गया है, वहीं जबलपुर के आदिवासी विकास विभाग के कलेक्टर दर के कर्मचारी इस महंगाई के जमाने में मात्र 10000 रुपये में गुजर बसर करने को मजबूर है। इस बाबत कई बार विभाग से संपर्क कर जब भी पूछा गया तो वही एक रटा रटाया सा जवाब मिलता है कि फाइल प्रक्रिया में है, फाइल चल रही है, फाइल बढ़ गई है, फाइल साहब की टेबल में रखी है।
वहीं अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त कर्मचारियों तक को भी उनका हक नहीं मिल पा रहा है, इस प्रकार की लापरवाही अन्यत्र किसी जिले में देखने को नहीं मिलेगी, लेकिन जबलपुर में विभाग के आला अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंगती। कई बार यह मामला मीडिया माध्यम से अधिकारियों के संज्ञान में भी लाया गया, लेकिन अधिकारियों का रवैया पूर्व की तरह आज तक उदासीन है। संघ मांग करता है कि अगर 15 दिवस के अंदर प्रक्रिया पूरी नहीं की गई तो संघ तीव्र आंदोलन होगा, जिसका जिम्मेदार आदिवासी विकास विभाग होगा।
संघ के योगेंद्र दुबे, अर्वेन्द्र राजपूत, अवधेश तिवारी, अटल उपाध्याय, मुकेश सिंह, मंसूर बेग, आलोक अग्निहोत्री, बृजेश मिश्रा, मनोज सिंह, वीरेंद्र चंदेल, एसपी बाथरे, परशुराम तिवारी, चुरामन गुर्जर, सीएन शुक्ला, सतीश देशमुख, श्याम नारायण तिवारी, धीरेन्द्र सोनी, संतोष तिवारी, महेश कोरी ने जबलपुर जिले के कलेक्टर से मांग की हैकि आदिवासी विकास विभाग के अधिकारियों को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की विनियमिततीकरण की प्रक्रिया शीघ्र प्रारंभ करने हेतु निर्देशित करें।