ओरछा (हि.स.)। अयोध्याधाम में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले के ऐतिहासिक नगर ओरछा में आज सुबह हजारों लोग राम राजा सरकार के मंदिर में माथा टेकने पहुंचे। बेतवा नदी के तट पर बसा यह नगर चंदेलकालीन है। ओरछा को बुंदेलखंड की अयोध्या कहा जाता है। इस पावन अवसर पर राम राजा सरकार मंदिर को फूलों से सजाया गया है। प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए हैं। यहां नए साल पर भी लाखों भक्त पहुंचकर अपनी सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करते है।
उल्लेखनीय है कि ओरछा देश में एक मात्र ऐसी जगह है, जहां भक्त और भगवान के बीच राजा और प्रजा का संबंध है। यहां भगवान रामराजा के रूप में पूजे जाते है। यहां रामराजा सरकार के अलावा किसी भी वीवीआईपी को गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया जाता। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक को भी नहीं। अयोध्या से ओरछा की दूरी करीब 450 किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों ही जगहों के बीच गहरा नाता है। जिस तरह अयोध्याधाम के रग-रग में राम हैं, उसी प्रकार ओरछा की हर धड़कन में राजा राम विराजमान हैं।
प्रभु राम यहां धर्म से परे हैं। हिन्दू हों या मुस्लिम, दोनों के ही वे आराध्य हैं। अयोध्या और ओरछा का करीब 600 वर्ष पुराना नाता है। कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह की महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा ले आई थीं। पौराणिक कथा के अनुसार मधुकरशाह कृष्ण भक्त और महारानी राम उपासक थीं। इस वजह से दोनों के बीच विवाद होता था। एक बार शाह ने महारानी से वृंदावन जाने चलने का प्रस्ताव किया। महारानी ने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार कर अयोध्या जाने को ठानी। तब राजा ने व्यंग्य किया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ।
यह ताना महारानी को चुभ गया। वह अयोध्या पहुंचीं। 21 दिन तप किया। तब भी उनके आराध्य प्रभु राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी। कहा जाता है कि महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम नदी के जल में ही उनकी गोद में आ गए। तब महारानी ने राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने तीन शर्तें रख दीं। पहली, मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा। दूसरी, ओरछा के राजा के रूप विराजित होने के बाद किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी। तीसरी और आखिरी शर्त खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु- संतों को साथ ले जाने की थी।
कहते हैं कि महारानी ने तीनों शर्तें सहर्ष स्वीकार कर लीं। इसके बाद राम राजा ओरछा आ गए। तब से भगवान श्रीराम यहां राजा के रूप में विराजमान हैं। एक दोहा ओरछा के रामराजा मंदिर में लिखा है कि रामराजा सरकार के दो निवास हैं-”खास दिवस ओरछा रहत हैं रैन अयोध्या वास।” ओरछा में प्रभु राम पर एक और बात प्रचलित है। कहा जाता है कि 16वीं सदी में विदेशी आक्रांता मंदिर और मूर्तियों को तोड़ रहे थे। तब अयोध्या के संतों ने जन्मभूमि में विराजमान श्रीराम के विग्रह को जल समाधि देकर बालू में दबा दिया था। यही प्रतिमा रानी कुंवरि गणेश ओरछा लेकर आई थीं। कहा जाता है कि 16वीं सदी में ओरछा के शासक मधुकर शाह ही एकमात्र ऐसे पराक्रमी हिंदू राजा थे, जिन्होंने अकबर के दरबार में बगावत की थी। एक राजा के रूप में विराजने की वजह से यहां उन्हें चार बार की आरती में सशस्त्र सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है।