भोपाल (हि.स.)। केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार देर शाम पद्म पुरस्कारों की ऐलान किया है। यह पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों में अहम योगदान देने वाले शख्सियतों को दिया जाता है। इस बार 33 विभूतियों को पद्मश्री देने का फैसला किया गया है। इनमें मध्य प्रदेश की चार हस्तियों का भी चयन किया गया है, जिन्हें साल 2024 के लिए पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा।
उज्जैन के रहने वाले 85 वर्षीय पंडित ओमप्रकाश शर्मा को भारत में माच माच लोक रंगमंच का चेहरा माना जाता है। उन्हें साल 2024 के लिए पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा। वे माच और हिंदी रंगमंच के उस्ताद कालूराम शर्मा जी के पौते और पंडित शालिग्राम शर्मा बेटे हैं। उनका संबंध दौलतगंज घराना से है। वे वर्तमान में नानाखेड़ा स्थित अथर्व विहार कालोनी में निवास करते हैं। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन माच लेखन और नाट्य संगीत को समर्पित किया। उन्होंने मालवी भाषा में माच के लिए कई नाटक लिखे। उन्होंने थिएटर प्रस्तुतियों के लिए संगीत भी तैयार किया। इस लोक कला में युवा कलाकारों को प्रशिक्षण भी दिया। उन्होंने अपनी जिंदगी का लंबा वक्त मालवा क्षेत्र की लोक नाट्य परंपरा ‘माच’ को बचाए रखने में गुजारा। लोक नाट्य परंपरा ‘माच’ करीब 200 साल पुराना है।
उज्जैन के ही 82 वर्षीय डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित को भी शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयन हुआ है। इनकी जन्म स्थली धार और कर्मस्थली उज्जैन रही। गत वर्ष शिखर सम्मान और संगीत नाटक एकेडमी पुरस्कार से ये नवाजे गए थे। उनकी पहचान संस्कृतवदि्, पुरातत्वविद्, प्रसिद्ध लेखक, सांदीपनि महाविद्यालय में हिंदी विभाग के आचार्य और महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक के रूप में रही है।
डॉ. राजपुरोहित शासन से राजाभोज पुरस्कार, डॉ. राधाकृष्ण सम्मान, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी का अधिकांश समय लेखन में बिताया है। वे अपने अब तक के जीवनकाल में महाकवि कालिदास, महान शासक रहे सम्राट विक्रमादित्य, रोजा भोज और लोक साहित्य पर अनेकों किताबें लिख चुके हैं। वे महाकवि कालिदास की नाट्य एवं काव्य रचनाओं का हिंदी और मालवी भाषा में अनुवाद कर चुके हैं। वर्तमान में महाकवि कालिदास पर हुए शोध में प्राप्त नई जानकारियों पर आधारित किताब और नाट्य शास्त्र के सांस्कृतिक अध्ययन पर आधारित किताब लिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरी जिंदगी लिखना, पढ़ना, सीखना ही है। बस कर्म करता हूं, फल की इच्छा नहीं रखता। मेरा सौभाग्य है कि मुझे गुरु बहुत अच्छे मिले थे। अपनी किताबों में अध्ययन और अनुभव को उतारने की कोशिश करता हूं।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कबीरवाणी के लोक गायक और अंतरराष्ट्रीय आर्टिस्ट कालूराम बामनिया को कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कारों से नवाजा जाएगा। वे कबीर को अपने अनूठे तरीके से प्रस्तुत करते हैं। कालूराम बामनिया मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में कबीर, गोरखनाथ, बन्नानाथ और मीरा जैसे भक्ति कवियों को गाने की एक जीवंत परंपरा से संबंधित हैं। उन्होंने 9 साल की कम उम्र में ही अपने पिता, दादा और चाचा के साथ मंजीरा सीखना शुरू कर दिया था। जब वे 13 वर्ष के थे, तब वे घर से भाग के राजस्थान चले गए, जहां उन्होंने 1-2 वर्षों के लिए भ्रमणशील मिरासी गायक राम निवास राव के गीतों की एक विस्तृत सूची को समाहित किया।
वहीं, खेल क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए सतेंद्र सिंह लोहिया को भी पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा। वे दोनों पैरों से 70 प्रतिशत दिव्यांग हैं। सतेंद्र का जन्म 1987 में जिला भिंड मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में एक सामान्य बच्चे की तरह हुआ था, लेकिन जन्म के पंद्रह दिनों के भीतर एक गंभीर बीमारी का उचित इलाज न होने के कारण उनके पैरों की नसें सिकुड़ गईं, जिसके कारण उनके दोनों पैर 70 प्रतिशत अक्षम हो गए। सतेंद्र को कई अवॉर्ड मिल चुके हैं।
पैरा स्विमर (दिव्यांग तैराक) सतेंद्र सिंह लोहिया इंदौर के जीएसटी विभाग में कार्यरत हैं। सत्येंद्र 2007 में तैराकी शुरू करने के बाद से सात नेशनल और तीन इंटरनेशनल पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं। अब तक नेशनल में 20 मेडल और पांच गोल्ड मेडल हासिल किए। पहला इंटरनेशनल गोल्ड मेडल सत्येंद्र को 2017 में सिडनी में मिला। फिर 23 जून 2018 को लंदन में इंग्लिश चैनल रिले पार करने के बाद उन्होंने 2019 में अमेरिका में कैटरीना चैनल पार कर दूसरी बड़ी उपलब्धि हासिल की थी। इसके बाद 2020 में राष्ट्रपति की ओर से उन्हें तेनजिंग नोर्गे पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्होंने 20 सितंबर 2022 को अपने तीन साथियों के 36 किलोमीटर लंबे नॉर्थ चैनल को 14 घंटे 39 मिनट में पार करने का रिकॉर्ड कायम किया था।