केन्द्र सरकार के आउटसोर्स कर्मियों के समान न्यूनतम वेतन पाने की लालसा रखने वाले लंबे समय से आंदोलनरत रहे एमपी के ढाई लाख आउटसोर्स व दैनिक वेतन भोगी कर्मी श्रमायुक्त द्वारा 1 अप्रैल 2024 से लागू मिनिमम वेजेस रिवाईज़ संबंधी अधिसूचना आदेश को लेकर हताश व निराश हैं, क्योंकि ये ऑल इंडिया कंज्यूमर प्राईज़ इंडेक्स के ताज़ा लेटेस्ट बेस ईयर पर आधारित नहीं है, बल्कि यह 20 साल पुराने बेस ईयर 2001 पर आधारित है।
इससे एमपी के श्रमिकों का पारिश्रमिक केन्द्र के आउटसोर्स श्रमिकों व दैनिक वेतन भोगियों से काफी पीछे हो गया है। यह बात ऑल डिपार्टमेंट आउटसोर्स संयुक्त संघर्ष मोर्चे के प्रांतीय संयोजक मनोज भार्गव एवं महामंत्री दिनेश सिसोदिया ने एमपी के मुख्यमंत्री, श्रम मंत्री, प्रमुख सचिव श्रम एवं श्रमायुक्त को प्रेषित पत्र में कही है ।
मनोज भार्गव ने बताया कि एमपी के पिछले 35 सालों के इतिहास पर नज़र डालें तो प्रदेश में जब-जब न्यूनतम वेतन रिवाईज़ हुआ, तब-तब हमेशा दो से लेकर ढाई व तीन गुना न्यूनतम वेतन में बढ़ौत्तरी हुई, पर इस बार 1 अप्रैल 2024 से मामूली 20 प्रतिशत की बढ़ौत्तरी की गई है एवं श्रेणी के अनुपात में रेशियो नहीं बढ़ाकर एक समान डीए किया गया है, जो बेतहाशा बढ़ती महंगाई की तुलना में ऊँट के मुँह में जीरे के समान है।
इस बार सबसे बड़ा उल्लंघन यह हुआ कि एमपी में न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 की धारा 3 के तहत् प्रत्येक 5 वर्ष में न्यूनतम वेतन पुनरीक्षित करने का प्रावधान है, पर इस नियम का उल्लंघन कर वर्ष 2014 के आधार पर किये गये वेजे़स रिवाईज़ के 5 वर्ष बाद वेतन रिवाईज़ नहीं किया जाकर 8वें वर्ष में श्रमायुक्त एमपी ने 1 अप्रैल 2024 से वेतन रिवाईज़ किया और इन 33 माह विलंब से हुए वेतन रिवाईज़ गेप की भरपाई कर पारिश्रमिक बढ़ौत्तरी समायोजित तक नहीं की गई और ना ही 33 माह का एरियर श्रमिकों को दिया गया है।
मनोज भार्गव ने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि मिनिमम वेज़ेस रिवाईज़ में गलत मैथेडोलॉजी ली गई। नियमानुसार इंडेक्स बेस ईयर एवं करंट ईयर के बीच ज़्यादा फाँसला नहीं होना चाहिए, पर इस बार आधार वर्ष एवं रिफ्रेंस पीरियड में बड़ा फाँसला है । साथ ही असाधारण कलाबाज़ी यह हुई कि इंडेक्स बेस ईयर 2016 के माध्यम से वेज़ेस रिवाईज़ की गणना करने के बजाय नवीन बेस ईयर की अनदेखी कर 20 वर्ष अति पुराने बेस ईयर 2001 के सूचकांक के आधार पर मिनिमम वेजे़स रिवाईज़ की गणना की गई, जो श्रमिकों के साथ सरासर नाइंसाफ़ी व उनका आर्थिक हनन है ।
मनोज भार्गव ने बताया कि भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ‘महँगाई भत्ते की गणना करने वाला एक बेंचमार्क है, जो महँगाई के परिवर्तन को मापता है, यह एक निश्चित अवधि में जीवन स्तर में होने वाले परिवर्तन को मापने का सांख्यिकी साधन है।‘
एक सूचकांक आधार वर्ष से प्रतिशत परिवर्तन दर्शाता है। यदि परिवर्तन ना हो तो अंश (न्यूमरेटर) एवं हर (डिनोमिनेटर) समान होंगे। इसलिए भारत सरकार का सांख्यिकी मंत्रालय हर वर्ष करोड़ों रूपये खर्च कर पहले पायलेट सर्वे, फिर फाईनल सर्वे कराने के बाद डाटा अनुमोदित कर समय-समय पर इंडेक्स बेस ईयर बदलता है, पर एमपी के श्रम विभाग द्वारा इस बार न्यूनतम वेतन रिवाईज़ करते समय नवीनतम बेस ईयर की अनदेखी कर 20 साल पुराने इंडेक्स बेस ईयर 2001 को न्यूनतम वेतन गणना का पैमाना बनाया गया, इससे यथोचित वेतन वृद्धि नहीं हुई, जबकि परसेप्शन यह चलाया जा रहा है कि भरपूर वेतन बढ़ौत्तरी की गई है।
इसके विपरीत हकीकत यह है कि मार्च-2024 में जो अकुशल कर्मी 3325 रुपये डीए पाते थे, उनका डीए अब अप्रैल-2024 से घटकर 2225 रुपये यानि पहले से 1100 रुपये कम मिलेगा। इसी तरह अर्द्धकुशल, कुशल व उच्च कुशल को मार्च-2024 में जो 3625 रुपये डीए मिलता था, उन्हें अप्रैल-2024 से घटकर 2225 रुपये यानि पहले की तुलना में 1400 रुपये डीए कम मिलेगा। इस तरह डीए बढ़ने के बजाय घट गया और इसे वैधानिक जामा पहनाने के लिए डीए विनियोजित (मर्ज) करने का नाम दे दिया गया है।
मनोज भार्गव ने भारत सरकार, श्रम व रोजगार मंत्रालय, मुम्बई द्वारा 12 अक्टूबर 2023 को जारी परिपत्र का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट गाइडलाईन दी गई है कि जहाँ केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार ने मिनिमम वेजे़स फिक्स किये हैं, वहाँ केन्द्र या राज्य जिसकी भी मिनिमम वेजे़स दर ज्यादा होगी, वही अधिक दर लागू की जाये, पर एमपी में तो अलग ही अनुचित फार्मूला अपनाया जा रहा है ।
मनोज भार्गव ने पत्र लिखकर एमपी के मुख्यमंत्री व श्रम मंत्री को याद दिलाया कि भाजपा ने गत् विधानसभा चुनाव-2023 के दौरान अपने संकल्प पत्र के पृष्ठ संख्या-81 में एमपी के 2.50 लाख आउटसोर्स कर्मचारियों को संविदा का लाभ देने एवं केन्द्र के श्रम कानून के अधीन सुविधा देने का वायदा किया था, पर जब देने की बारी आई तो उससे मुकर कर केन्द्र के आउटसोर्स की तुलना में आधा-अधूरा मिनिमम वेज़ेस दिया जा रहा है, इसलिए एमपी सरकार अपने संकल्प पत्र के अनुरूप ऐसा मैकेनिज़्म डेवलप करे, जिससे प्रदेश के आउटसोर्स कर्मियों को संविदा के समान लाभ मिले। उन्होंने सरकार से अपील की है कि वह एमपी में दोबारा संशोधित न्यूनतम वेतन रिवाईज़ कर उसका पुनः निर्धारण करें, अन्यथा एमपी के श्रमिक आंदोलन पर विवश होंगे ।