मप्र ऑल आउटसोर्स संयुक्त संघर्ष मोर्चा के प्रांतीय संयोजक मनोज भार्गव व वासुदेव शर्मा ने प्रदेश भर में निकली आउटसोर्स झण्डा यात्रा के बाद आज भोपाल में हुए विधानसभा प्रदर्शन के दौरान विभिन्न विभागों के आउटसोर्स कर्मियों को गिरफ्तार कर पुलिस द्वारा इन कर्मचारियों को कई किमी दूर जंगल में खूंखार पशुओं के बीच छोड़ दिये जाने की कड़े शब्दों में निंदा की है।
उनका कहना है कि सरकार म.प्र. के ढाई लाख आउटसोर्स कर्मियों पर हो रहे जुल्म को बचाने की बजाए गरीब आउटसोर्स का जो मिनिमम वेजेस सरकार द्वारा बनाये गये न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 की धारा 3 के तहत् पाँच वर्ष बाद वर्ष 2020 में रिवाईस हो जाना था, उसे अब कम से कम सातवें वर्ष में ही रिवाईस कर पिछले दो वर्षों का बकाया एरियर आउटसोर्स को भुगतान करे। साथ ही आउटसोर्स कर्मियों को भरी जवानी में मात्र 45 साल की उम्र में रिटायर करने की जगह रेगुलर कर्मचारियों की भाँति 62 वर्ष में रिटायर किया जाना चाहिए।
इसके बाद आक्रोशित आउटसोर्स कर्मियों ने वरिष्ठ कर्मचारी नेता कृष्णगोपाल पुरोहित के नेतृत्व में मप्र विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष ठाकुर गोविन्द सिंह को ज्ञापन सौंपकर वेतन रिवाईस के मामले में श्रमायुक्त इन्दौर द्वारा किये जा रहे उल्लंघन को लेकर मिनिमम वेजेस एक्ट 1948 का पालन करवाने की माँग की, जिस पर नेता प्रतिपक्ष ने ठोस संवैधानिक कार्यवाही हेतु आश्वस्त किया।
इस अवसर पर मनोज भार्गव ने कहा कि सभी विभागों में कार्यरत प्रदेश के ढाई लाख आउटसोर्स कर्मी कमाल के काबिल हैं, वह सभी विभागों को नित-नई ऊँचाई दे रहे हैं, पर लगातार ठेकेदार उनका शोषण कर उन्हें आर्थिक पतन और गुलामी की गर्त में धकेल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार विभागों, अर्द्धशासकीय प्रतिष्ठान व बिजली कंपनियों का कंप्यूटरीकरण कर उन्हें विकसित व अपग्रेड कर रहे हैं। इसलिए उन्हें ठेकेदारों की पराधीनता से मुक्त कर सरकार के आत्मनिर्भर अभियान में शामिल कर विभागों से यदि सीधा वेतन दिया जाये, तो इससे वित्तीय भार आना तो दूर, ठेका कमीशन, जीएसटी व टीडीएस खर्च की करीब 25 प्रतिशत राशि 1500 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष सरकार की बचेगी।
प्रांतीय संयोजक वासुदेव शर्मा ने कहा कि जिस प्रकार वर्ष 2007 में शिक्षा कर्मियों ने कर्मी शब्द से मुक्ति हेतु आन्दोलन कर इस शब्द से मुक्ति पाई थी। वैसे ही आने वाले समय में म.प्र. के ढाई लाख आउटसोर्स कर्मचारी ‘आउटसोर्स कर्मी’ शब्द से मुक्ति पाकर ही दम लेंगे, क्योंकि सभी विभागों में उनका वेतन, बोनस व ईपीएफ राशि ठेकेदार अनुचित रूप से छीनकर लगातार हड़प रहे हैं, पर हैरत की बात यह है कि सरकार व विभागीय अधिकारी मौन हैं।