एक ओर एमपी सरकार आदिवासियों के लिए अनेक योजनाएं चलाकर उन्हें लुभाने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर बिजली कंपनी के अधिकारी सरकार की मंशा के विपरीत निर्णय लेते हुए सरकार की साख पर पलीता लगा रहे हैं। कहीं ऐसा न हो बिजली अधिकारियों की कारगुजारियों का खामियाजा सरकार को आगामी चुनाव में भुगतना पड़े।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि प्रदेश की शिवराज सरकार ने संविदा कर्मियों के लिए जो संविदा नीति लागू की है, उसको मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी का प्रबंधन नहीं मानता और अपनी अलग अघोषित संविदा नीति चला रहा है। जिससे संविदा कर्मचारियों को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
ताज्जुब की बात है कि प्रदेश के ऊर्जा विभाग के अंतर्गत संचालित होने वाली पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने कार्य के दौरान दिव्यांग हुए संविदा कर्मी का अनुबंध न केवल बढ़ाया, अपितु उसे उसके अनुरूप कार्य भी दे दिया। वहीं एमपी ट्रांसको के प्रबंधन के द्वारा कार्य के दौरान दिव्यांग हुए आदिवासी संविदा कर्मी का अनुबंध बढ़ाने में आनाकानी की जा रही है। इतना ही अमानवीय कंपनी प्रबंधन उससे पिछले चार महीनों से मुख्यालय के चक्कर भी लगवा रहा है।
इस बारे में मध्य प्रदेश विद्युत मंडल तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि 14 दिसंबर 2021 को शंकरगढ़ इंदौर के पास मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी के 132 केवी सबस्टेशन के अंदर कार्य के दौरान संविदा परीक्षण सहायक अनूप सिंह परते को करंट लगने के कारण उनके दोनों पैर एवं दाहिना हाथ जल गया था। इसके बाद 25 जनवरी 2022 को अस्पताल में उपचार के दौरान उसके दोनों पैर काट दिए गए थे।
इसके बाद मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी ने 23 मई 2023 को संविदा कर्मचारी अनूप सिंह परते का अनुबंध आगे नहीं बढ़ाया। जिस कंपनी का कार्य करने के दौरान संविदा कर्मचारी अनूप सिंह परते दिव्यांग हुआ, उसी मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी के द्वारा अब अपनी अलग संविदा नीति चलाते हुए अनुबंध बढ़ाने में आनाकानी की जा रही है।
जबकि पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी प्रबंधन ने मानवीयता और संवेदनशीलता का परिचय देते हुए कार्य के दौरान दिव्यांग हुए संविदा कर्मी का अनुबंध बढ़ा दिया और उसे उसके अनुरूप कार्य भी सौंप दिया। एमपी सरकार की बिजली कंपनियों में अलग-अलग संविदा नीति समझ से परे है।