लोकेश नदीश: मप्र सरकार के पर्यटन विभाग का टीवी पर एक विज्ञापन चलता है, जिसे अधिकांश लोगों ने देखा भी होगा, जिसकी टैग लाइन है ‘एमपी अजब है, सबसे गजब है।’ इस टैग लाइन का दर्शकों पर क्या प्रभाव हुआ ये तो नहीं पता, लेकिन लगता है कि प्रदेश सरकार के दूसरे विभागों और संस्थानों ने इसे आत्मसात कर लिया। तभी तो इन संस्थानों के आला अधिकारी भी ऐसे ही अजब-गजब निर्णय लेते रहते हैं।
बात बिजली विभाग की करें तो ये सर्वविदित है कि प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों में अधिकारियों और कर्मचारियों की बेहद कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार पर नई भर्ती का दबाव बनाने की बजाए, कंपनी प्रबंधन अजब-गजब निर्णय ले रहा है और एक क्रमिक पर अनेक प्रभारों का भार लाद दिया जा रहा है।
मध्य प्रदेश विद्युत मंडल तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी के 400 केवी, 220 केवी और 132 केवी उप केंद्रों में मध्य प्रदेश विद्युत मंडल के द्वारा बनाए गए नॉर्म्स के अनुसार तकनीकी कर्मचारियों एवं अधिकारियों से कार्य नहीं कराया जा रहा है। 400 केवी, 220 केवी उप केंद्रों में एक सहायक अभियंता एवं एक जूनियर इंजीनियर के स्थापना तत्काल की जावे, ताकि उप केंद्रों का कार्य सुचारू रूप से किया जा सके।
उन्होंने बताया कि अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कमी के कारण उप केंद्रों का संचालन सुचारू रूप से चलायमान रखने के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। एक अधिकारी एवं कर्मचारी को तीन से चार उप केंद्रों का प्रभार सौंप दिया जा रहा है। जिससे उनपर मानसिक रूप से अत्यधिक दबाव है और इसके चलते हर वक्त दुर्घटना घटित होने की संभावना बनी रहती है।
संघ के केएन लोखंडे, रमेश रजक, एसके मौर्य, एसके शाक्य, मोहन दुबे, राजकुमार सैनी, जेके कोस्टा, अजय कश्यप, लखन सिंह राजपूत, शशि उपाध्याय, महेश पटेल, अरुण मालवीय, इंद्रपाल सिंह, सुरेंद्र मेश्राम, आजाद सकवार, दशरथ शर्मा, मदन पटेल आदि ने पावर ट्रांसमिशन कंपनी के प्रबंध संचालक से मांग की है कि उप केंद्रों में नॉर्म्स के अनुसार अधिकारियों एवं कर्मचारियों से कार्य कराया जावे और अन्य समस्याओं का निराकरण तत्काल किया जाए।