मप्र पावर ट्रांसमिशन कंपनी के प्रदेश में 400 केवी, 220 केवी तथा 132 केवी के कुल 417 सब-स्टेशन हैं, जिनका 15 सालों से मेन पावर ठेका करीब 300 अलग-अलग ठेकेदारों के जिम्मे है। जिनमें कई बिजली इंजीनियर या रिटायर्ड अधिकारियों के रिश्तेदार यह ठेके मनमानीपूर्वक चलाकर ठेका कर्मचारियों का शोषण कर रहे हैं। इसलिए इन 300 ठेकों की जगह केन्द्र के एनटीपीसी की तर्ज पर यूपीएल जैसी एक ही एजेंसी को एक मुश्त ठेका दिया जाये , ताकि नीतिगत एकरूपता रहे।
मप्र बिजली आउटसोर्स कर्मचारी संगठन के प्रांतीय संयोजक मनोज भार्गव ने ऊर्जा मंत्री, प्रमुख सचिव एवं ट्रांसमिशन कंपनी के एमडी को पत्र प्रेषित कर कहा है कि ट्रांसमिशन कर्मियों को हर माह वेतन देर से मिलता है, बोनस 10 माह बाद भी नहीं मिला है। पीएफ व ईएसआईसी की राशि कई माह बाद अकाउंट में जमा की जाती है।
इसके अलावा सुरक्षा सामग्री व ड्रेस कर्मचारी स्वयं खरीदते हैं, वरना नौकरी से हटाने की धमकी दी जाती है। अब नौबत यहां तक आ गई है कि ट्रांसमिशन कंपनी में कार्यरत सब-स्टेशन ऑपरेटरों को 11 हजार की जगह 9 हजार मासिक वेतन मिल रहा है। जबलपुर, कटनी, नरसिंहपुर, गाडरवारा, पिपरिया, छिन्दवाड़ा, होशंगाबाद एवं रीवा के शिफ्ट ड्यूटी चार्ट व सैलरी बिल चैक किये जाये तो यह साबित होगा कि आठवें पैड ऑफ कर्मचारी को पैड ऑफ पर रखने की जगह उसे प्रतिमाह 20 या 21 दिन की ड्यूटी करवाई जा रही है। इससे शेष 7 ऑपरेटर के वेतन से प्रतिमाह डेड़ से दो हजार की कटौती की जा रही है, जबकि 7 ऑपरेटर मे से जब कोई अवकाश पर हो तभी आठवे पेड ऑफ कर्मचारी से काम कराया जाना चाहिए, ताकि ट्रांसमिशन कंपनी के सब-स्टेशनों के सभी 7 ऑपरेटर प्रत्येक माह पूरा वेतन पा सकें।