हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और पंजाब की राज्य सरकारें अपने यहाँ के आउटसोर्स कर्मियों को लेकर पॉलिसी बना रही हैं, पर मप्र सरकार इस मामले में पीछे है। अभी हाल ही में गत 13 अक्टूबर 2022 को हिमाचल प्रदेश सरकार ने वहाँ के 30 हजार आउटसोर्स कर्मियों के हित में डिप्लॉयमेंट ऑफ कॉंट्रेक्चुअल पर्सन पॉलिसी बनाई है और वहाँ कौशल विकास एवं रोजगार निगम बनाकर आउटसोर्स कर्मियों का अपग्रेडेशन कर उन्हें विशेष ट्रेनिंग सुविधा उपलब्ध कराने का फैसला लिया है।
ऑल डिपार्टमेंट आउटसोर्स संयुक्त संघर्ष मोर्चे के प्रान्तीय संयोजक मनोज भार्गव का कहना है कि मप्र के ढाई लाख आउटसोर्स के मामले में इससे बेहतर पॉलिसी बनाई जाये। उन्होंने पूछा- हिमाचल प्रदेश में आउटसोर्स कर्मियों के लिए मेडिकल लीव व भत्ते तो मप्र में क्यों नहीं? हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने यहाँ के आउटसोर्स को एक कलेण्डर वर्ष में 6 मेडिकल स्पेशल लीव देने एवं प्रदेश में टूर पर जाने पर 130 रुपए एवं राज्य के बाहर 200 रुपए दैनिक भत्ता देने का प्रावधान किया है, जबकि मप्र में यह प्रावधान नहीं है। यहाँ तक कि बिजली कंपनियों के सभी टेण्डरों में एक वर्ष में 13 आकस्मिक अवकाश आउटसोर्स कर्मियों को देने का प्रावधान है, पर इसका पालन कर यह अवकाश अधिकांश कर्मचारियों को नहीं दिये जा रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश के तकनीकि विभाग ने अपने यहाँ के आउटसोर्स के लिये एक मजबूत तंत्र बनाकर वहाँ स्किल विकास हेतु आउटसोर्स कर्मियों का अपग्रेडेशन कर उन्हें कौशल विकास के तहत विशेष तकनीकि ट्रेनिंग देने का फैसला लिया है, जब कि मप्र के तकनीकि आउटसोर्स कर्मी हेल्पर, सबस्टेशन व संयंत्र ऑपरेटर को 3 माह की कौशल विकास ट्रेनिंग देने से सरकार लगातार बचती रही है।
हिमाचल में बनी केबिनेट सब कमेटी पर मप्र में नहीं दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में आउटसोर्स को लेकर बनी सरकारी कमेटियाँ रिपोर्ट दे चुकी हैं, जबकि मप्र में अब तक कमेटी ही नहीं बनी है। हिमाचल प्रदेश में जलशक्ति मंत्री महेन्द्र सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी में शहरी मंत्री सुरेश भारद्वाज व ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी की 3 सदस्यीय केबिनेट सब कमेटी ने आउटसोर्स कर्मियों की समस्या निराकरण हेतु रिपोर्ट दे दी है, यह कमेटी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने गठित की थी।
हिमाचल प्रदेश सरकार की 3 सदस्यीय केबिनेट सब कमेटी ने अपनी लिखित रिपोर्ट में इस तथ्य को स्वीकार किया है कि आउटसोर्सिंग एजेंसी मानव बल ठेकेदार हर जगह मनमाने पूर्ण अंदाज में रोजगार देते हैं, इसमें ना तो पारदर्शिता है और ना ही कोई व्यवस्थित प्रक्रिया। ठेकेदार प्रायः वेतन समय पर नहीं देते हैं, ईपीएफ अपने मन मुताबिक काट लेते हैं और आउटसोर्स कर्मियों का हेल्थ इंश्योरेंस भी नहीं करवाते हैं। यहाँ तक कि ईपीएफ व ईएसआई लाभ समय पर नहीं देते हैं। यही सारी परिस्थिति म.प्र. के सभी विभागों व उपक्रमों एवं बिजली कम्पनियों में भी कायम है, पर मप्र सरकार इसे रोकने हेतु कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।
मनोज भार्गव ने बताया कि हिमाचल प्रदेश सरकार की 3 सदस्यीय केबिनेट सब कमेटी ने अपनी लिखित रिपोर्ट में इस तथ्य को स्वीकार किया है कि आउटसोर्सिंग एजेंसी मानव बल ठेकेदार हर जगह मनमाने पूर्ण अंदाज में रोजगार देते हैं, इसमें ना तो पारदर्शिता है और ना ही कोई व्यवस्थित प्रक्रिया। ठेकेदार प्रायः वेतन समय पर नहीं देते हैं, ईपीएफ अपने मन मुताबिक काट लेते हैं, और आउटसोर्स कर्मियों का हेल्थ इंश्योरेंस भी नहीं करवाते हैं। यहाँ तक कि ईपीएफ व ईएसआई लाभ समय पर नहीं देते हैं। यही सारी परिस्थिति मप्र के सभी विभागों व उपक्रमों एवं बिजली कम्पनियों में भी कायम है, पर मप्र सरकार इसे रोकने हेतु कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।
पूरे मप्र के सभी विभागों, निगम, मण्डल, बोर्ड, नगरीय निकाय, पंचायत, बिजली कंपनियों में सैकड़ों मानव बल ठेकेदार आउटसोर्स ऐजेंसियाँ चला रहे हैं, जब कि दिल्ली राज्य में यूपीसीएल जैसी एक या दो मानव बल ऐजेंसियाँ है। मप्र सरकार चाहे तो वह ही एक या दो ऐंजेंसियों से आउटसोर्सिंग कार्य करवा सकती है, पर ऐसा नहीं हो रहा है। दिल्ली राज्य सरकार दे रही केन्द्र समान मिनिमम वेजेस पर मप्र सरकार नहीं।
दिल्ली-तेलंगाना जैसी राज्य सरकारें अपने यहाँ के आउटसोर्स कर्मियों को केन्द्र के आउटसोर्स समान मिनिमम वेजेस दे रही हैं, पर मप्र में ऐसा नहीं हुआ। यहाँ मप्र में केन्द्र से आधा वेतन आउटसोर्स कर्मियों को मिल रहा है। यहाँ तक कि न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 की धारा 3 के प्रावधान के तहत जो न्यूनतम वेतन पाँच वर्ष बाद मप्र में रिवाइज होना था वह सातवें वर्ष में भी रिवाईज नहीं हुआ है। इसको लेकर मप्र के आउटसोर्स कर्मी आगामी दिसम्बर में काम बन्द आंदोलन की तैयारी में हैं।
मनोज भार्गव ने बताया कि हमने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मप्र के बई लाख आउटसोर्स कर्मियों का वेतन रिवाइज कर केन्द्र समान दो गुना वेतन दिये जाने, हर वर्ष 13 सीएल, 10 मेडिकल लीव, जोखिम भत्ता, रात्रिकालीन भत्ता व राष्ट्रीय त्यौहार के दिन काम करने पर एडीशनल वेजेस देने व विभागीय संविलियन करने की मांग हम लगातार कर रहे हैं। यदि सरकार ने अब हमारी मांग अनसुनी की तो काम बंद आंदोलन का सहारा लेगें।