प्रभु शिव पर मंद-मंद जल चढ़ाना चाहिए। भगवान भेद नहीं करते है, अमृत नेत्र से भी निकलता है, हनुमान जी में सभी देवताओं का तेज पाया जाता है, उक्त उदगार करमेता चल रही श्रीमद भागवत कथा में बनारस से नगर पधारे भगवताचार्य प्रमेश मिश्र ने व्यक्त किए। महराजश्री ने कहा कि आज संस्कृति बिगड़ गई है, पहनावा, खानपान, भाषा का सम्हाल करना होगा, वेद शास्त्र जीव के आंख, कान होते है, सत्य ही ब्रह्म है, संसार सत्य नहीं है, लेकिन जीव संसार से सुख चाहता है, संसार के मूल में परमात्मा होते है।
उन्होंने कहा प्रयागराज महत्वपूर्ण है, आवश्यकता से अधिक संग्रह नहीं करना चाहिए, दाता को अहंकारी नहीं होना चाहिए, सात्विक दान बढ़ता है, दान महान होता है, कन्या विवाह, गौ हत्या, मृत्यु, जीविका बचाने पर झूठ बोलने पर दोष नहीं लगता है, एक आंख से संसार, एक परमार्थ की ओर लगाना उचित होता है, धर्म के कार्य में बाधक नहीं बनना चाहिए, परमात्मा के चरणो से गंगा का प्रादुर्भाव पाया गया है, पवित्र बुद्धि संसार नहीं चाहता, वह प्रभु भक्ति में लीन रहना चाहता है, वासुदेव जी के जन्म पर आकाश में नगाड़े बजने लगे थे।
द्वापर युग को मिश्रण युग कहा गया है, श्रेष्ठ कार्य से पितृ प्रसन्नय होते है, भगवान से मांगने से अच्छा है भगवान को ही मांगना चाहिए, 14 मन्वंतर होते है, प्रत्येक मन्वंतर में देवताओं का बदलाव होता है, अभी इंद्र पुरंदर है, अगला इंद्र बली होगा। नारायण को प्राप्त कर लो लक्ष्मी जी प्राप्त हो जाती है। ईश्वर सत्य है जगत मिथ्या है, राम साक्षात धर्म की मूर्ति है, राम जी का परिवार अदभुद पाया जाता है, शरीर रथ है बुद्धि सारथी होती है। मृत्यु के भय से पाप नहीं करना चाहिए। इस दौरान पार्वती, बबलू, अटल, सुमन उपाध्याय, नरेंद्र, मनीषा उपाध्याय, सुशीला, ऋतु, सोनू, रश्मि आदि उपस्थित रहे।