एमपी की बिजली कंपनियों में नियमित भर्ती बंद, कहीं निजीकरण की तैयारी तो नहीं?

विद्युत वितरण कंपनियों की कार्यप्रणाली को समझने वाले ये अच्छी तरह जानते हैं कि विद्युत तंत्र को चलायमान रखने में शत-प्रतिशत योगदान जमीनी तकनीकी कर्मचारियों (लाइनमैन) का होता है। इसके बावजूद इनके योगदान को नकारते हुए सबसे ज्यादा इनका ही शोषण किया जाता है। कभी आपने मीडिया में सुना या पढ़ा है कि कार्य के दौरान किसी अधिकारी को करंट लगा है,  करंट हमेशा लाइन कर्मी को ही लगता है और जान भी हमेशा लाइन कर्मी की ही जाती है।

वहीं दूसरी बात वर्तमान में मध्य प्रदेश की सभी विद्युत कंपनियों में लाइन कर्मियों की संख्या न के बराबर रह गई, एक समय था जब नियमित लाइन कर्मियों की घटती संख्या को देखते हुए उनके सहायक के रूप में न केवल संविदा कर्मियों की भर्ती की गई, साथ ही आउटसोर्स कर्मियों की भी भर्ती की गई। ताकि पोल पर चढ़कर कार्य करने के दौरान संविदा या आउटसोर्स कर्मी उनकी सहायता कर सकें।

एक तरफ तो प्रतिदिन विद्युत उपभोक्ताओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, दूसरी ओर लाइन कर्मियों की संख्या लगातार घट रही है। ऐसी स्थिति में अधिकारी संविदा और आउटसोर्स कर्मियों से न केवल नियमविरुद्ध करंट का कार्य करा रहे हैं, अपितु अनुचित दबाव भी बनाते हैं, जिससे कई कर्मी असमय काल का शिकार हो चुके हैं। मंत्रालय से वितरण केन्द्र तक बैठे अधिकारी किस सोच में हैं, ये तो वही जानते हैं, लेकिन एकबारगी इसे निजीकरण की कवायद कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। यही कारण है कि अतिआवश्यक होने के बाद भी मैदानी स्तर पर नियमित लाइन कर्मियों की भर्ती के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं।

इस विषय में मध्य प्रदेश विद्युत मंडल तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि अगर नियमित लाइन कर्मियों की कमी जल्दी पूरी नही की गई तो, आने वाले समय में बिजली उपभोक्ताओं को ही इलेक्ट्रिशियन बुलाकर खुद ही ट्रांसफार्मर और पोल में आए विद्युत फाल्ट ठीक कराने होंगे, जिस तरह अभी घर के अंदर बिजली के कार्य कराए जाते हैं।

उन्होंने कहा कि बिजली कंपनियों में तकनीकी कर्मियों की बेतहाशा कमी होने के बावजूद प्रबंधन द्वारा वर्षों से नियमित भर्ती बंद रखी गई है। इसके साथ ही न ही कंपनियों में कार्यरत संविदा कर्मियों का नियमितीकरण किया जा रहा है और न ही आउटसोर्स कर्मियों का कंपनी में संविलियन किया जा रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं विद्युत कंपनियों के निजीकरण की तैयारी की जा रही है। क्योंकि किसी भी संस्था को चलाने के लिए परमानेंट मैन पावर जरूरी होता है और जब मैन पावर ही नहीं होगा तो कंपनियों का अस्तित्व बचना मुश्किल है।

उनका कहना है कि विद्युत वितरण कंपनियों को अगर चलायमान रखना है तो कंपनियों में करंट का नियमानुसार कार्य करने के लिए नियमित लाइन कर्मियों की भर्ती करना जरूरी है। इसके लिए विद्युत कंपनी प्रबंधन को ज्यादा को ज्यादा कुछ करने की जरूरत भी नहीं है। सिर्फ अनुभवी हो चुके संविदा लाइन कर्मियों का नियमितीकरण और आउटसोर्स कर्मियों का कंपनी में संविलियन कर इस समस्या का समाधान तत्काल किया जा सकता है।