Tuesday, November 5, 2024
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दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था वाला देश श्रमिकों को मिनिमम वेजेस देने में 127 देशों से पीछे

भारत के करोड़ों श्रमिकों की मजदूर दिवस पर त्रासदी है कि भारत सरकार दावा करती है कि भारत विश्वगुरू है और भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, पर भारत के जिन करोड़ों आउटसोर्स, दैनिक वेतन भोगी व अन्य श्रमिकों ने दिन-रात अपना पसीना बहाकर भारत की अर्थव्यवस्था को विश्व में पांचवाँ स्थान दिलाया, वही भारतीय श्रमिक अपने श्रम के बदले में न्यूनतम मजदूरी अथवा न्यूनतम वेतन (Minimum Wage) पाने के मामले में विश्व में 128वें नम्बर पर हैं, जबकि इन्हें 5वें स्थान पर लाया जाना चाहिए।

ऑल डिपार्टमेंट आउटसोर्स संयुक्त संघर्ष मोर्चे के प्रांतीय संयोजक मनोज भार्गव एवं महामंत्री दिनेश सिसोदिया का कहना है कि दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत के श्रमिकों को कम न्यूनतम वेतन मिलने की ठोस वजह यह है कि भारत सरकार का श्रम मंत्रालय वर्तमान वर्ष 2024 में भी पुराने इंडेक्स बेस ईयर 2016 को आधार बनाकर न्यूनतम वेतन का भुगतान कर रहा है, क्योंकि केन्द्रीय सांख्यिकी मंत्रालय ने नया बेस ईयर 2024 अब तक बनाया ही नहीं है।

इससे भी बद्तर हालत मप्र के श्रमिकों की है, जिन्हें 20 वर्ष पुराने इंडेक्स बेस ईयर 2001 की महँगाई दर के आधार पर न्यूनतम वेतन दिया जा रहा है। भारत में बढ़ती महँगाई का बेंचमार्क जिस अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को माना जाता है, उसमें विश्व में कनाडा पहले नम्बर पर है, जबकि भारत 41वें नम्बर पर है ।

मनोज भार्गव के मतानुसार खेदजनक बात यह है कि मौजूदा केन्द्र सरकार चलाने वाले शासक लोकसभा चुनाव 2024 के पूर्व जारी अपने संकल्प पत्र में न्यूनतम वेतन बढ़ाने का वादा करने की जगह न्यूनतम वेतन की समीक्षा कहकर इतिश्री कर रहे हैं, जबकि वर्ष 2021 में समीक्षा होकर अब तक भारत के श्रमिकों का न्यूनतम वेतन रिवाईज़ हो जाना चाहिए था।

भारत विश्व के अन्य प्रगतिशील देश ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, लक्ज़मबर्ग, जर्मनी, इंग्लैंड, आयरलैंड, फ्रांस, बैल्जियम, नीदरलैंड, कनाडा, साउथ कोरिया, ईरान, अर्जेंटीना, स्पेन व जापान से कोसों पीछे है। जहाँ ऑस्ट्रेलिया में श्रमिकों को 17.47 यूएस डॉलर, न्यूज़ीलैंड में 16.10 यूएस डॉलर, जर्मनी में 14.68 यूएस डॉलर, इंग्लैण्ड में 14.27 यूएस डॉलर, कनाडा में 11.60 यूएस डॉलर, साउथ कोरिया में 11.50 यूएस डॉलर एवं जापान में 8.14 यूएस डॉलर प्रतिघण्टा मजदूरी मिलती है। वहीं भारत में श्रमिकों को प्रतिघण्टा 0.27 प्रति यूएस डॉलर यानि मात्र 22 रुपये प्रतिघण्टा मजदूरी वर्तमान में मिल रही है, जो विश्व के अन्य 127 देशों से बहुत कम है।

भारत से कई गुना छोटा देश लक्ज़मबर्ग के कुशल श्रमिकों को प्रतिमाह 3357 यूएस डॉलर एवं अकुशल श्रमिकों को प्रतिमाह 2798 यूएस डॉलर यानि कुशल को 2 लाख 78 हजार 631 रुपये एवं अकुशल को 2 लाख 32 हजार 234 रुपये न्यूनतम वेतन मिलता है, जबकि भारत के कुशल श्रमिकों को केन्द्र सरकार प्रतिमाह 23,556 रुपये एवं अकुशल को 16926 रुपये न्यूनतम वेतन प्रतिमाह कागज़ों पर मिलता है, जिसमें से मानव बल ठेकेदार कुछ हिस्सा आउटसोर्स श्रमिकों से हड़प लेते हैं।

मनोज भार्गव ने सरकार से अपील की कि वह मजदूर दिवस पर भारत के श्रमिकों को यह तोहफा दे कि विश्व के अन्य देशों की तरह भारत में सांख्यिकी मंत्रालय समय-समय पर बेस ईयर बदले व 2024 बेस ईयर तत्काल बनाये और श्रम मंत्रालय नवीनतम बेस ईयर के आधार पर श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान करे, जिससे श्रमिकों के जीवन स्तर में सुधार हो सके।

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