ट्राइकोडर्मा एक लाभकारी फफूंद है जो मिट्टी में मौजूद रहता है। यह पौधों की जड़ के आस-पास पनपता है और इसका उपयोग मुख्य रूप से रोग कारक जीवों की रोकथाम एवं मिट्टी की सेहत को सुधारने के लिए किया जाता है।
उपसंचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास जबलपुर रवि आम्रवंशी ने यह जानकारी देते हुये बताया कि ट्राइकोडर्मा जैविक खेती के लिये महत्वपूर्ण है। यह हानिकारक फफूंद जैसे की फ्युजेरियम, राइजोक्टोनिया, स्क्लेरोसिया और पिथियम के खिलाफ प्रभावी होता है। ट्राइकोडर्मा पौधों की जड़ों पर एक सुरक्षात्मक परत बनता है, जिसे हानिकारक फफूंद इसके अंदर प्रवेश नहीं कर पाते हैं।
ट्राइकोडर्मा मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों को पौधों के लिए सुलभ बनाता है एवं मिट्टी की जलधारण क्षमता को भी बढ़ाता है । इससे पौधों को अधिक समय तक नमी मिलती रहती है। इसके अलावा ट्राइकोडर्मा जड़ों की वृद्धि और शाखों को बढ़ावा देता है । जिससे पौधों की पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता बढ़ जाती है।
उपसंचालक ने बताया कि ट्राइकोडर्मा का उपयोग करना बहुत ही आसान है। यह पाउडर, तरल और ग्रेन्यूल जैसे विभिन्न रूप में उपलब्ध होता है । इसका बीज उपचार, मिट्टी उपचार और पौधों की जड़ों के उपचार के रूप में प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि ट्राइकोडर्मा का 6 से 10 ग्राम पाउडर प्रति किलो बीज की दर से बीजों को उपचारित किया जाता है।
पौधशाला में नीम की खली, केंचुए की खाद या सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर भी ट्राइकोडर्मा 10 से 25 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिट्टी का शोधन किया जाता है। खेत मे सनई या ढैंचा पलटने के बाद कम से कम 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राइकोडर्मा पाउडर का भुरकाव करने से शीघ्रता से खेतों में ट्राइकोडर्मा की बडवार होती है।
खड़ी फसल में ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर जड़ के पास डालने से लाभ प्राप्त होता है। ट्राइकोडर्मा के उपयोग से रासायनिक कीटनाशक और फफूंद नाशक पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, यह पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं है, यह मिट्टी और पानी को प्रदूषित नहीं करता है एवं सूक्ष्म जीव विविधता को बनाए रखता है।