समय रहते यदि हमारे देश में वृक्षारोपण पर पूरा ध्यान दिया गया होता तो शायद इस महामारी जैसी बीमारी का सामना न करना पड़ता। दुनिया में अनेक ऐसे देश है जिनका धरातल पूरी तरीके से हारा वाला है इन बीमारियों को पास में नहीं फटकने दिया जैसे कि Comoros, Kiribati, Lesotho, Marshall Islands, Micronesia Nauru, North Korea, Palau, Samoa, Sao Tome and Principe, Solomon Islands, South Sudan, Tajikistan, Tonga, Turkmenistan, Tuvalu, Vanuatu, Yemen जैसे तमाम देश कोरोना से बचे हुए हैं। उसके पीछे सिर्फ पर्यावरण ही मैन वजह है। वृक्षारोपण से ही पृथ्वी का संतुलन बना रहेगा और इसका लाभ लोगों को रोजगार के रूप में मिलेगा। हरा भरा हो धरा हमारा, रोजगार का मिलेगा सहारा, के मंत्र के साथ आपको इससे मिलने वाले लाभ को अवगत करवाता हूं।
यह भली-भांति मालूम है कि जब तक जनता को इससे सीधा लाभ नहीं दिखाई देगा वह इस पर ध्यान देने वाली नहीं है अतः आवश्यक है इस पर एक ठोस तथा कड़ा कानून बनाकर लागू किया जाए देश में और इससे होने वाले लाभ का व्यापक प्रचार-प्रसार हो। इसे एक जन आंदोलन का रूप देना पड़ेगा। इससे होने वाले लाभ का बिंदुवार डालने का प्रयास कर रहा हूं, हो सकता है कि यह सरकार के लिए लाभदायक सिद्ध हो और पृथ्वी को ग्लोबल वार्मिंग से छुटकारा दिलाया जा सके।
कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलने में पेड़ एक सार्थक भूमिका निभाए। यह कहना आवश्यक नहीं है कि हमारे देश का बच्चा बच्चा भी इस चीज को जानते हैं कि पेड़ कार्बन ऑक्साइड को लेते हैं तथा ऑक्सीजन हमें देते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड ही सारी बीमारियों की जड़ है। फिर प्रकृति हमारी भक्षक नहीं देश में रक्षक साबित होगी और कोरोना वायरस देश के आसपास भी नहीं फटकने देगा।
किंतु यह देखा जा रहा है कि जब हम सत्ता में नहीं होते हैं और सत्ता की सीढ़ी पर जब चलना शुरू करते हैं तो सब इन चीजों का हमें ज्ञान होता है किंतु सत्ता पर पहुंचते ही यह सब चीजें भूल जाते हैं और वहां की चमक दमक में हम खो जाते हैं आज समय आ गया है कुछ कर गुजरने का। पूरा देश लगभग 40-42 दिन से ठप पड़ा हुआ है सारे लोग परेशान हैं लोग घरों में कैद हैं कैदियों की जैसा जीवन यापन कर रहे हैं पशु-पक्षी पेड़-पौधे भी सब परेशान हैं तो आखिर कब हम इन योजनाओं को अमलीजामा पहनाएंगे।
हमारे पड़ोसी देश चाइना में आयुर्वेद की दवाओं का भरमार है तथा वहां अंग्रेजी दवाओं का प्रचलन नगण्य है तो क्या हिमालय के दूसरी तरफ बसा देश भारत इसको करने में अक्षम है। रामायण में लक्ष्मण को शक्ति लगने पर सुषेण वैद्य द्वारा सुझाए गई संजीवनी दवा हिमालय से ही हनुमान जी के द्वारा लाई गई थी। पर आज आयुर्वेद की दवाओं से लोगों के विश्वास में कमी पाई जा रही है इसका मूल कारण अंग्रेजी दवाओं से तत्कालिक होने वाला लाभ ही है किंतु अंग्रेजी दवाओं के दूरगामी परिणाम बड़े घातक साबित होते हैं इसे भी हम जानते हैं।
1. सरकार यदि जनता को बोल दे कि आप अपनी जगह में जो हमारे वैज्ञानिकों के द्वारा सुझाया गया पेड़ को लगाओगे तो प्रतिमास ₹500 के हिसाब से आपको मिलेगा किंतु यह पैसा इकट्ठा एक बार में ही 3 साल के बाद पेड़ के सत्यापन होने के बाद ही मिले।
सरकार के आयुष विभाग द्वारा पेड़ मालिक के साथ एग्रीमेंट हो वह निजी प्रयोग में आने वाले फल और पत्ते को छोड़कर समस्त आयुष विभाग को दे देता रहे।
सरकार का आयुर्वेद विभाग उसको फल तथा पत्ते का पैसा भी दे। सभी लोगों की वृक्षारोपण के प्रति रुचि जागेगी और वृक्षारोपण बहुत तेज गति से देश में होने लगेगा। ‘पेड़ लगाओ, धन कमाओ’ का नारा सार्थक साबित होगा।
2. वृक्षारोपण का कठोर कानून बनने के साथ ही हमें हर गांव स्तर पर आयुर्वेद के दवाखाना खोलने पर सार्थक प्रयास करना होगा तथा उनमें आयुर्वेद का ज्ञाता डॉक्टर तथा कंपाउंडर की भर्ती करनी होगी जिससे लोगों को रोजगार मिलेगा। हमारी जनता को अंग्रेजी दवाओं के स्थान पर आयुर्वेद की दवाओं का लाभ मिलने लगेगा क्षेत्र पंचायत स्तर पर ही हमें आयुर्वेद के कारखाने को लगाना होगा जिसमें आयुर्वेद की दवाओं का निर्माण हो सके तथा उस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सभी ग्राम सभाओं में इनका वितरण हो तथा इससे लोगों का उपचार शुरू हो सके।
3. हमारी सरकार उज्जवला योजना को लाकर के लोगों को एलपीजी सिलेंडर का मुफ्त में खूब वितरण कर रही है तथा गैस सिलेंडर पर सब्सिडी भी दे रही है। क्या सरकार को यह नहीं पता है कि गैस से बनने वाला खाना और चूल्हे से बनने वाले खाने के बीच में जमीन तथा आसमान का अंतर होता है गैस से पकी हुई रसोई हमेशा पेट में गैस जैसी कब्जियत को जन्म देती है।
चूल्हे पर बना हुआ खाना बड़ा पौष्टिक तथा बीमारी रहित होता है और वह स्वादिष्ट भी होता है।
मतलब साफ है कि गैस से गैस ही बनेगी गैस से बने हुए खाने में गैस का ही जन्म होगा। गैस की जगह पर यदि
पेड़ों से पाई जाने वाली सूखी लकड़ी का उपयोग खाना बनाने में होने लगे तथा उससे होने स्मोक से वायु में वह व्याप्त प्रदूषण भी नष्ट होगा तथा मच्छर कीड़े मकोड़े जैसे जंतुओं से भी छुटकारा मिलेगा। क्योंकि यह आयुर्वेद की दवाओं में सहायक होने वाले पेड़ हैं इनसे प्रदूषण कभी भी नहीं फैल सकता। साथ ही प्रकृति से गैस के दोहन पर भी विराम लगाया जा सकता है।
हम यह भली-भांति जानते हैं कि ढोलक, हारमोनियम तबला तथा हस्तकला की तमाम ऐसी चीजों का निर्माण सिर्फ लकड़ी के द्वारा ही किया जाता है क्या यह लोहे से करना संभव है।
हम यह भी जानते हैं कि हमारे देश में खनिज संपदा है किंतु इनका दोहन आखिर कब तक चलता रहेगा किसी ना किसी दिन एक खनिज संपदा हमारी खत्म हो जाएंगे तथा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ प्रकृति कभी भी स्वीकार नहीं करेगी।
हम ब्लॉक स्तर पर तथा जिले स्तर पर लकड़ी के कारखानों को लगा दें जिससे कि प्रदूषण बहुत कम है लेगा तथा इनसे निर्माण होने वाली चीजों का निर्यात भी बहुत जोरों पर होगा। पेड़ों से रोजगार मिलना संभव हो जाएगा।
ज्ञात हो कि विदेश से आई हुई कंपनी पोस्को उड़ीसा के अंतर्गत आने वाले जिले जगत सिंहपुर के गांव कुजंग में एक स्टील प्लांट लगाना चाह रही थी जिसका मकसद साफ था कि वह अयस्क को प्रोसेस करके विदेशों में ले जाएगी तथा लोहे का वहां निर्माण कर दूसरे देशों में निर्यात करेगी किंतु वहां की जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया तथा इसे नकार दिया पोस्को के भागने के साथ ही देश की सरकार ने बड़ी होशियारी से जिंदल स्टील जेएसडब्ल्यू जैसी कंपनी को वहां संयंत्र लगाने का हरी झंडी दे दी तथा वहां लगाने में कामयाब होती दिखाई दे रही है। आखिर हम कब तक आंख मूंद कर बैठे रहेंगे हम कब इन योजनाओं पर पूर्णविराम लगाएंगे।
क्यों ना हम लोग अयस्क के खनन को रोकने तथा इसकी जगह पर वृक्षारोपण को महत्व दें तथा वृक्षों से प्राप्त होने वाली लकड़ी के द्वारा बड़े कारखाने जिले स्तर पर लगाए जाए जिससे लकड़ी के बने हुए प्रोजेक्ट विदेशों में बेचे जाए जिससे लोगों को रोजगार भी मिले और यह पर्यावरण के लिए हितकारी भी हो।
लकड़ी से हम कागज का निर्माण करते हैं लकड़ी से ही हम गांव का निर्माण करते हैं।
लकड़ी के प्रयोग से अनेक प्रकार के प्रोडक्ट तैयार होते हैं हम क्यों ना कोशिश करें लकड़ी हमारे जीवन का एक मूल आधार भी होता है हम लकड़ी को यदि अपने प्रयोग में लाना सीख जाए तो यह प्रकृति की मां मारी जैसी चीजों से देश की जनता को निजात दिलाया जा सकता है।
4 वृक्षारोपण से ही जलवायु का संतुलन बनाया जा सकता है, वृक्ष लगाए जाएंगे तो बारिश भी समय पर होगी तथा आंधी और तूफान जैसी चीजों से देश की जनता को राहत मिलेगी और पत्तियों से बनने वाली दवाएं तथा खाद का उपयोग हमारी कृषि में किया जाएगा जिससे हमारी कृषि की उर्वरक क्षमता और भरपूर अनाज का देश में उत्पादन होने लगेगा।
धरती का घटता जल स्थल स्वता ही ऊपर आ जाएगा यदि समय पर बारिश होने लगेगी और यह धरती पर वृक्षारोपण से ही संभव है।
हम जानते हैं यूरोप के बहुत सारे देश अमेरिका ब्रिटेन जैसे जहां कल पुर्जे तो तैयार कर सकते हैं किंतु खाद्यान्न नहीं उपजा सकते हैं।
भारत एक कृषि प्रधान देश है कि हमें याद रखना चाहिए यदि हम अपनी कृषि नीति को सुधारने तथा जैविक खाद को का बढ़ावा दें तो शुद्ध अनाज खेतों से पैदा होने लगेगा और बहुत सारी कृतिम खाद की वजह से होने वाले अनाज से पैदा होने वाली बीमारियों से भी जनता को छुटकारा दिलाया जा सकता है। हमें वेस्टर्न कल्चर की नकल नहीं करनी है।
हमारी सरकार का नारा साकार होगा “स्वस्थ रहेगा इंडिया-तभी तो बढ़ेगा इंडिया”।
5. इससे हमारे पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा तथा जानवरों को खाने के लिए हरे चारे की कोई कमी नहीं होगी जिससे शुद्ध दूध देश में उत्पादन होने लगेगा और दूध से बने हुए बहुत सारे प्रोडक्ट जो विदेशों में निर्यात करने के भी काम में आएंगे।
-वीरेंद्र तोमर
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