महात्मा गांधी आप अजर हो, अमर हो, आप राष्ट्र के पालक हो, आप राष्ट्र के नायक हो, सत्य, अहिंसा के आप धावक हो, बतलाया आपने हमको स्वच्छता के महत्व को, महात्मा गांधी हम आभारी आपके इस अद्वितीय त्याग के।
जहाँ हाल ही में हमने महात्मा गाँधी का 150वाँ जन्मदिवस मनाया है और देश में हर गली, हर मोहल्ले, हर चौराहे, हर गाँव, हर कस्बे, हर पंचायत, हर तहसील से लेकर जिला, जिला से लेकर राजधानी और दिल्ली तक बड़ी धूमधाम और लगभग नशा मुक्त रहकर मनाया है।और मनाना भी चाहिए आखिर ऐसा व्यक्ति और ऐसे व्यक्तित्व का व्यक्ति सदियों में एक बार ही जन्म लेता है।
यह बात और है कि गाँधी भले ही शरीरिक रूप से हमारे साथ नही है, किन्तु गांधी के कहे हुए विचार याद आते है, जब 1932 में गांधी ने कहा था कि “गाँधी मर सकता है, किंतु गाँधीवाद कभी नही मर सकता है।” और यदि वर्तमान परिपेक्ष की बात की जाए तो महात्मा गाँधी आज भी वैसे ही इस समाज में निवास कर रहे हैं, जैसे 1947 से पहले थे। आज देखा जाए तो पूर्व से पश्चिम तक उत्तर से दक्षिण तक सब गाँधीमय है। वर्तमान मे नदियों की धारा में गांधी की सत्य और अहिंसा का संगम मिलता है। ये मदमस्त हवाओं में भी गाँधी एवं गाँधी के विचारों का जाम मिला हुआ है, जिसने भी इस जाम का है रसपान किया वो सत्य अहिंसा का पुजारी हुआ। महात्मा गाँधी और गाँधी जी के विचार कण-कण और पग-पग फैले हुए है। गाँधी के विचार वर्तमान और भविष्य के भारत आधार सूत्र रहेंगे, जो भारत के उदय को और भी सुनहरी सौंदर्यता से उदयित करेंगे।
महात्मा का मध्यप्रदेश से जुड़ाव- महात्मा गाँधी और मध्यप्रदेश सितम्बर 1929 को गाँधी जी ने अपने प्रिय शिष्य एमए अंसारी के आग्रह पर आतिथ्य स्वीकार किया। 11 सितम्बर 1929 को महात्मा गाँधी भोपाल वर्धा आश्रम से आये। जहाँ बेनजीर ग्राउंड और राहत मंजिल को महात्मा गाँधी की प्रिय सफेद खादी से सजाया गया। बेनजीर ग्राउंड पर महात्मा गाँधी ने रामराज्य के यथार्थ को समझाया और मुस्लिमों में फैली गलत अवधारणा और छुआछूत को दूर करने का संदेश दिया।
ऐसा नहीं की महात्मा गांधी को अपना भोपाल रास नहीं आया हो उन्होंने 12 सितम्बर को जनसभा को संबोधित करते हुए यहाँ की आबो-हवा और सामाजिक सौंदर्य की बात की थी, महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा में गीता, कुरान, बाइबल सब का पाठन किया गया।
गांधी का रामराज्य से आशय हिंदू या मुसलमान के शासन या राम या रहीम के शासन से नही था, बल्कि गाँधी जी का आशय ईस्वर का शासन से था अर्थात वर्तमान परिपेक्ष्य के अनुसार जनता का शासन जनता के लिए।
दूसरी बार मध्यप्रदेश की स्टेशन पर महात्मा- महात्मा गांधी का मध्यप्रदेश में 1933 मे पुनः आगमन हुआ जब महात्मा जी जेल से रिहा होकर आए थे और उसी समय वह ट्रेन बदलने के लिए भोपाल स्टेशन पर उतरे थे। तभी बापू के अनुयायियों को बापू के आने की खबर लग गयी और वह सब बापू के पास हाजिर हो गए और बापू को स्टेशन पर अपने अनुयायियो के आग्रह पर संबोधन किया और बापू ने अपने युवा अनुयायियों से आह्वान किया कि अस्पृश्यता आंदोलन में सभी साथ मिलकर सहयोग करे।
भोजन करने के बदले ली सोने की थाली- गाँधी जी 1935 मे हिंदी सहित्य के सम्मेलन के लिए इंदौर आये थे, जहाँ सेठ हुकमचंद ने गांधी जी को भोजन के लिए आमंत्रित किया और गाँधी जी ने आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। वहाँ कुछ और लोग भी आमंत्रित थे और उन सबको चाँदी की थाली में परोसा गया लेकिन महात्मा जी को सोने की थाली लगाई गई तो गाँधी जी ने इसका विरोध मज़ाकिया अंदाज़ में करते हुए गुजराती में कहा- ‘म्हारो नियम छे जेमा जमुं छुंते वासणम्हारा थई जाय छे’ अर्थात किं मैं जिस बर्तन में भोजन करता हूँ उसे अपने साथ ले जाता हूँ और मे इस सोने की थाली को भी अपने साथ ले जाऊँगा। इस पर सेठ हुकुमचंद ने विनम्रतापूर्वक हाँ में उत्तर दिया।
जिससे गांधी जी खिलखिलाकर हँस पड़े और गाँधी जी ने अपने साथी रामचंद्र ग्वाल से स्वयं के बर्तन निकालने का कहा और अपने ही बर्तनों मैं भोजन किया। हिंदी साहित्य समिति के प्रचार मंत्री अरविंद ओझा ने बताया कि गांधी जी ने उस सोने की थाली को बेचकर जितना पैसा आया उस पैसे को वर्धा की हिंदी सहित्य समिति को दान दे दिया।
इंदौर-महू में झलका महात्मा गांधी का गाँव के प्रति अपनापन- बात उस समय की है जब गाँधी जी 21 अप्रैल 1935 को इंदौर औए थे, वहाँ उन्होंने स्वदेशी प्रदर्शनी और प्लांट इंस्टीट्यूट का निरीक्षण किया। यहाँ बापू ने एक आमसभा को संबोधित करते समय गाँव की उपेक्षा की बात करते हुए कहा था कि हम कंगाल इसलिये है क्योकि हमने 7 लाख गांवों की उपेक्षा की है। आज लोगों का गाँव के प्रति लगाव महात्मा के विचारों और महात्मा गांधी की प्रासंगिकता को बढ़ाते है।
नन्नी बाई और गाँधी की आत्मीयता भरी मुलाकात- 1 दिसम्बर 1933 को देवरी में महात्मा गाँधी जी मीरा बहन के साथ सभा को सम्बोधित करने जा रहे थे, तभी एक नन्नी बाई नामक बालिका गांधी जी को देखने आयी तभी उसकी टक्कर हो जाती है तो उसे मीरा बहन अपने साथ हॉस्पिटल ले जाती है और गाँधी जी अपनी सभा खत्म कर उस बालिका से मिलने पहुँचते है तो वह बालिका अपने सभी कष्ट भूल जाती है और महात्मा को अपने पास देख मुस्कुरा उठती है। महात्मा गांधी का बाल मनुहार एक बार फिर नजर आया।
बापू के मध्यप्रदेश में अस्पृश्यता (छुआछूत) से छुटकारा पाने के लिए बापू ने मध्यप्रदेश के कई हिस्सों में अपना समय बिताया, बापू ने जातिवाद की एक लम्बी खाई को भरने के लिए मध्यप्रदेश के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सभाएँ की है, जिनमें बापू ने छुआछूत पर करारा प्रहार किया है, जहाँ देश में एक और स्वतंत्रता के लिए प्रयास चल रहे थे तो वही साथ में अस्पर्शता उन्मूलन के लिए महात्मा गाँधी की यात्राएं जोरों पर थी।
महात्मा गाँधी ने हमें स्वतंत्र ही नहीं किया, अपितु जातिवाद के अंधविश्वास को तोड़ा मरोड़ा ही नहीं अपितु उस पर करारा प्रहार कर उस को ध्वस्त कर दिया, आज समाज जातिवाद के तुच्छ मापदंडों से ऊपर उठ कर समाज हिताय, सर्वस्व हिताय के मापदंड पर कार्य कर रहा है, महात्मा गाँधी ने हमें स्वतंत्रता ही नही बल्कि हमे जीवन जीने के लिए एक सत्य और अहिंसा का मार्ग प्रशस्त किया है, जिससे समाज का उद्धार संभव हो सका है।
माखन दादा की रचित कर्मवीर में प्रकाशित यह कविता महात्मा गांधी के प्रति हमारे प्यार को शिखर पुंज तक ले जाती है।
‘महात्मा तुम हमारे ह्रदयों के सम्राट हो,
जब तुम यहाँ ना आये,
तब भी तुम हमारे ह्रदय में छाए हुये थे,
अब हम तुम्हें विदा दे रहे है,
तब भी तुम हमारी आत्मा के आंसुओं और ह्रदय की वेदना में समाये हुए हो।’
पं. माखनलाल चतुर्वेदी
(कर्मवीर में प्रकाशित)
महात्मा गाँधी और मध्यप्रदेश देश के एक पूरक है, देश इन दोनों के बगैर सूना सा महसूस करता है, एक राष्ट्रपिता है तो दूजा धड़कन है। एक विचार है तो एक विचारों का पालनकर्ता है।
मनु शर्मा
खोपरा, अशोकनगर,
मध्य प्रदेश