फिल्म अभिनेता प्रेमनाथ किससे कहते थे- ‘घोड़ा अस्तबल में नहीं बिकता, बाज़ार में बिकता है’


पंकज स्वामी
जनसंपर्क अधिकारी, एमपीपीएमसीएल

फिल्म अभ‍िनेता प्रेमनाथ अपने गृह शहर जबलपुर से बहुत प्यार करते थे। जबलपुर में ही उनके पिता राय कर्तारनाथ की एम्पायर टाकीज थी। ब्रिटिश कालीन एम्पयार टॉकीज की खूबी इसकी स्थापत्य कला और विशाल स्क्रीन था। एम्पायर टॉकीज में ज्यादातर अंग्रेजी फिल्में ही रिलीज होती थीं। जेम्स बांड सीरिज की प्राय: सभी फिल्में एम्पायर टॉकीज में ही प्रदर्श‍ित होती थी। सातवें से नौवें दशक तक यहां हिन्दी फिल्में खासतौर से राजश्री बैनर की सभी फिल्में लगीं और खूब देखी गईं। राज कपूर की फिल्में भी एम्पायर टॉकीज में रि-रिलीज होती रहीं।

प्रेमनाथ बंबई की फिल्मी दुनिया से जबलपुर वर्ष में दो-तीन बार आते रहते थे। उनकी बहिन कृष्णा का विवाह राज कपूर से रीवा में हुआ था, लेकिन कृष्णा भी अवकाश बिताने जबलपुर आती थीं। उस समय उनके साथ पुत्र रणधीर, ऋष‍ि व पुत्री रितु बच्चों के रूप में आते थे। प्रेमनाथ के छोटे भाई राजेन्द्रनाथ व नरेन्द्रनाथ ने भी फिल्म अभिनेता के रूप में नाम कमाया। राजेन्द्रनाथ मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सहपाठी रहे। छोटी बहिन उमा जबलपुर में हॉकी की खिलाड़ी रहीं और बाद में उनका विवाह प्रेम चोपड़ा से हुआ। राज कपूर के छोटे भाई शम्मी कपूर भी कई बार अपनी पत्नी गीता बाली के साथ जबलपुर आए थे। उनका आना घरेलू या मांगलिक कार्यक्रम के आयोजन के कारण होता था।

शम्मी कपूर गीता बाली के विवाह में प्रेमनाथ

एम्पायर टॉकीज के बाएं ओर प्रेमनाथ का बंगला था। जहां उनकी लाल रंग की शेवरलेट कार खड़ी रहती थी। इस कार को जबलपुर के उस समय के प्रसिद्ध मैकेनिक रमजान कारीगर ठीक किया करते थे। उन्होंने ही कार के मूल रंग को बदल कर उसे लाल रंग में परि‍वर्तित कर दिया था। एम्पायर टॉकीज के मैनेजर रहे डीपी बाजपेयी ने बताया कि उन्हें उस कार में कई बार प्रेमनाथ व उनकी पत्नी बीना राय के साथ बैठ कर घूमने का मौका मिला था। डीपी बाजपेयी ने बताया कि वे लोग बंगले से जबलपुर के आसपास घूमने जाया करते लेकिन जल्द लौट कर वापस आ जाते थे। इसकी वजह कार में पेट्रोल की खपत बहुत थी।कार गैलन भर पेट्रोल पीती थी। प्रेमनाथ लाल रंग की शेवरलेट को अपने प्राणों से ज्यादा प्यार किया करते थे लेकिन उनकी मृत्यु के बाद बेटों ने उस कार को कबाड़ समझ कर बेच दिया।

प्रेमनाथ जबलपुर के रंगकर्मियों के साथ एम्पायर टॉकीज परिसर में

प्रेमनाथ की पत्नी बीना राय की फिल्म ‘इंसानियत’ जबलपुर की श्याम टॉकीज में लगी। इस फिल्म में बीना राय के साथ दिलीप कुमार व देव आनंद हीरो थे। फिल्म को बीना राय बंबई में नहीं देख पायी थीं। जबलपुर आने पर वे उस फिल्म को देखना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने श्वसुर राय कर्तारनाथ से फिल्म देखने की अनुमति मांगी। राय साहब ने तब के तत्कालीन पुलिस एसपी बीएल पाराशर को मसला बताते हुए सहायता मांगी। पुलिस एसपी की कार में उनकी दो बेटियों के साथ बीना राय बुर्का पहन कर फिल्म देखने गईं। एसपी साहब ने भी पूरे मसले को इतना गोपनीय रखा कि उन्होंने अपनी बेटियों को यह नहीं बताया कि उन्हें किसके साथ और कहां जाना है।

जब एसपी साहब की कार एम्पायर टॉकीज पहुंची तब बेटियों को जानकारी मिली कि उन्हें बीना राय के साथ उनकी अभिनीत फिल्म देखने जाना है। एसपी साहब की कार श्याम टॉकीज में भीतर तक गई और किसी को कानों कान खबर नहीं हुई। श्याम टॉकीज के फेमिली बाक्स में पहुंच कर बीना राय ने अपना जब बुर्का हटाया तब एसपी साहब की बेटियों ने बीना राय का चेहरा पहली बार देखा। बीना राय ने पूरी फिल्म तन्मयता से देखी। फिल्म खत्म होते ही एसपी साहब की कार से बीना राय चुपचाप निकल गईं। टॉकीज से बाहर निकलते दर्शकों में उस समय हलचल हुई जब उन्हें यह जानकारी मिली कि बीना राय भी फिल्म देखने आयीं हैं। दर्शकों की भीड़ टॉकीज में ठहर गई लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी। उस वक्त बीना राय एम्पायर टॉकीज के बाजू में अपने बंगले में प्रविष्ट हो चुकी थीं।

प्रेमनाथ पत्नी बीना राय व पुत्र मोंटी के साथ

वर्ष 1963 में प्रेमनाथ अपने पिता राय कर्तारनाथ के निधन के कारण जबलपुर आए थे। उसी समय जबलपुर में आधुनिक रंगकर्म की शुरुआत हो रही थी। श्याम खत्री राजकला मंदिर संस्था की ओर से एक बड़ा प्रोडक्शन ‘राह के कांटें’ का निर्देशन कर रहे थे। श्याम खत्री ने इस नाटक को लिखा भी था। नाटक का मंचन शहीद स्मारक में होने वाला था। ‘राह के कांटे’ के साथ फिल्म अभिनेता प्रेमनाथ का नाम भी उस समय जुड़ गया, जब वे शहीद स्‍मारक में पहले मंचन के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए। इससे पूर्व प्रेमनाथ कभी भी जबलपुर में किसी नाटक के मंचन में दर्शक के रूप में उपस्थित नहीं हुए थे। नाटक के कलाकार श्याम गुप्ता के आमंत्रण के कारण नाटक देखने आने वाले थे।

नाटक शुरू होने के ठीक पहले प्रेमनाथ शहीद स्मारक पहुंच गए। प्रेमनाथ के कारण नाटक में भीड़ उमड़ गई। जितने लोग शहीद स्‍मारक के अंदर थे उससे की गुना लोग बाहर खड़े थे। टिकट खिड़की बंद हो चुकी थी। टिकट न मिलने से निराश लोगों ने बाहर ही प्रेमनाथ की एक झलक पा कर संतोष कर लिया। निर्धारित समय पर नाटक शुरू हुआ। प्रेमनाथ सहित सभी दर्शक पूरे नाटक को ध्यान से देखते रहे।। नाटक जैसे ही समाप्त हुआ, पूरा शहीद स्मारक तालियों से गूंज उठा। प्रेमनाथ को पात्र परिचय के समय मंच पर आमंत्रित किया गया। प्रेमनाथ प्रस्तुति से प्रभावित हुए और उन्होंने प्रशंसा की। प्रेमनाथ को तीन अभिनेताओं श्याम किशोर गुप्ता, देवीदयाल झा और राकेश श्रीवास्तव ने विशेष रूप से प्रभावित किया। उन्होंने मंच पर ही घोषणा कर तीनों अभिनेताओं को बंबई आमंत्रित किया और कहा कि जब भी वे बंबई आएंगे, उन्हें वे ‘एक दिन का बंबई का सुल्तान’ बनाएंगे। तीनों अभिनेता अलग-अलग बंबई गए और प्रेमनाथ की मेजबानी में वे ‘एक दिन का सुल्तान बने।

इस नाटक के पश्‍चात् प्रेमनाथ का जबलपुर के रंगमंच से आत्मीय संबंध बन गया। श्याम खत्री को भी उन्होंने बंबई आमंत्रित किया। श्याम खत्री बंबई में उनसे दो-तीन बार मिले। एक बार उन्होंने प्रेमनाथ के साथ फिल्म देखी और यहां-वहां सैर भी की।  प्रेमनाथ जब भी जबलपुर आते वे एम्पायर टॉकीज के मैनेजर के जरिए श्याम खत्री को खबर करवाते थे। श्याम खत्री व पास्कल पाल के साथ दो-तीन बार प्रेमनाथ के बंगले गए। प्रेमनाथ स्वयं तो कम खाते थे, लेकिन सामने वाले को जबर्दस्ती ज्या‍दा भोजन करवा देते थे। एक बार 1966 में प्रेमनाथ जबलपुर आए, तब श्याम खत्री को कोई खबर नहीं मिली। प्रेमनाथ जिलहरी घाट में नर्मदा नदी में तैरने जाते थे। वहीं से वे सीधे श्याम खत्री के ‘दिया जले सारी रात’ नाटक की रिहर्सल में पहुंच गए।

जैसे ही प्रेमनाथ रिहर्सल स्थल पर पहुंचे तो किसी ने अंदर सूचना भिजवाई कि प्रेमनाथ आ रहे हैं। सभी कलाकार सतर्क हो गए। प्रेमनाथ बहुत देर तक सभी कलाकारों को पृथ्वी थिएटर के अनुभव सुनाते रहे। बीच-बीच में वे कभी नाटकों के दृश्य को अभिनय कर प्रदर्शित करने लगते तो कभी इतने उत्साह से यहां से वहां चलते कि पूरा सेट थरथरा जाता। प्रेमनाथ सभी को ‘बाबू’ कह कर संबोधित करते थे। अचानक उन्होंने श्याम खत्री से कहा- ‘बाबू ….समोसा मंगाओ, बाबू….समोसा मंगाओ।‘ प्रेमनाथ को समोसा बहुत पसंद था। जब भी उन्हें मौका मिलता वे समोसा ही खाना चाहते थे। अगले दिन प्रेमनाथ शहीद स्मारक में ‘दिया जले सारी रात’ को देखने पहुंचे। इस नाटक को भी प्रेमनाथ ने बहुत रूचि के साथ देखा।

प्रेमनाथ कई बार श्याम खत्री सहित अन्य रंगकर्मियों से कहते थे- ‘घोड़ा अस्तबल में नहीं बिकता, बाज़ार में बिकता है।’ उनके यह कहने का आशय यह था कि जो लोग फिल्म’ में जाना चाहते हैं, वे यहां अपना समय खराब कर रहे हैं। जो स्ट्रगल आप यहां कर रहे हैं, वह स्ट्रगल बंबई में करें। प्रेमनाथ सभी रंगकर्मियों से कहते थे कि दिल लगा कर काम सीखिए और मेहनत से करिए। जब भी जबलपुर के कलाकारों को जरूरत पड़ी, प्रेमनाथ सहायता करने में पीछे नहीं हटे बल्किआगे बढ़ कर उन्होंने मदद की। धर्मराज जायसवाल के नाटक का मुहुर्त प्रेमनाथ के एम्पायर टॉकीज में ही हुआ। कई बार उन्होंने एम्पायर टॉकीज को नाटक की रिहर्सल के लिए फ्री में दिया। बाद के समय में प्रेमनाथ जबलपुर के सभी रंगकर्मियों से खुल गए थे। सहजता व सरलता से बातचीत करते थे।

प्रेमनाथ के जीवन में वर्ष 1966 का बहुत महत्व है। इस वर्ष उन्हें ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ फिल्म में नेताजी की मुख्य भूमिका के लिए लगभग पक्का कर लिया गया था। उन्होंने श्याम खत्री को ‘दिया जले सारी रात’ में मंचन के समय फिल्म की प्रारंभिक तैयारी के कुछ वह फोटोग्राफ्स दिखाए, जिसमें प्रेमनाथ नेताजी की आजाद हिंद फौज की वर्दी में थे। फिल्‍म के स्क्रीन टेस्‍ट के समय वह फोटो उतारे गए थे। फिर अचानक उस भूमिका को अभिभट्टाचार्य ने निभाया। 1966 में ही विजय आनंद के निर्देशन में बनी फिल्म ‘तीसरी मंजि़ल’ रिलीज हुई और हिट भी। इस फिल्म में  प्रेमनाथ ने खलनायक कुंवर साहब की भूमिका निभाई थी। प्रेमनाथ इसके बाद इतने व्यस्त हो गए कि उनका जबलपुर आना काफी कम हो गया और श्याम खत्री सहित अन्य रंगकर्मियों की स्मृति में सिर्फ उनके साथ बिताए गए कुछ पल रह गए।

बंबई की इस पहली यात्रा से श्याम गुप्ता के प्रेमनाथ के साथ संबंध व्यक्त‍िगत व प्रगाढ़ हो गए। अगली यात्रा में वे जब बंबई पहुंचे, तब प्रेमनाथ फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त थे। एक दिन वे श्याम गुप्ता को फेमस सिने लेब ‘प्यार मोहब्बत’ की रिलीज के पूर्व की स्क्रीनिंग में ले गए। वहां पहुंच कर श्याम गुप्ता का प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। उस स्क्रीनिंग में श्याम गुप्ता के आदर्श बन चुके देवानंद साहब भी मौजूद थे। स्क्रीनिंग हो जाने के पश्चात् प्रेमनाथ श्याम गुप्ता का परिचय देवानंद से यह कह कर करवाया कि ये हमारे शहर जबलपुर के सर्वश्रेष्ठ अभ‍िनेता श्याम गुप्ता हैं।

प्रेमनाथ ने देव साहब से कहा कि उनकी किसी फिल्म में श्याम गुप्ता के लिए कोई रोल है क्या? देव साहब ने कहा कि यदि ये चाहें तो किसी फिल्म में ‘एकस्ट्रा’ के रूप में श्याम गुप्ता को मौका मिल सकता है। प्रेमनाथ ने श्याम गुप्ता से पूछा- ‘बाबू..बाबू एकस्ट्रा में जाओगे।‘ श्याम गुप्ता उस समय ‘एकस्ट्रा’ का अर्थ समझते नहीं थे। उन्होंने प्रेमनाथ से ‘एकस्ट्रा’ का अर्थ पूछा। प्रेमनाथ ने बताया कि जो कलाकार भीड़ का हिस्सा बनता है, उसे ‘एकस्ट्रा’ कहते हैं।

श्याम गुप्ता ने कहा कि वे तो नाट्य कलाकार हैं, ‘एकस्ट्रा’ के रूप में तो वे कतई फिल्मों में काम करना पसंद नहीं करेंगे। इस बात से प्रेमनाथ बहुत खुश हुए और उन्होंने इनाम स्वरूप अपने जेब में रखे पैसों में से कुछ पैसे श्याम गुप्ता को जबर्दस्ती थमा दिए। श्याम गुप्ता कुछ समझ नहीं पाए। प्रेमनाथ ने कहा कि यदि तुम ‘एकस्ट्रा’ बनने की बात को स्वीकार कर लेते तो मेरे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए सदैव को बंद हो जाते।

जबलपुर के अन्‍य कलाकारों की तरह उस दौरान प्रसिद्ध रेडियो अनाउंसर मनोहर महाजन व फिल्‍म प्रेमनाथ का एक किस्‍सा याद रखने लायक है। फ़िल्म अभिनेता प्रेमनाथ ने बड़े ही जोर-शोर के साथ ‘मीरा’ नाम की एक फ़िल्म की घोषणा की। यह फ़िल्म जबलपुर के कलाकारों के साथ बनाई जानी थी। प्रेमनाथ की टॉकीज ‘एम्पायर’ में कलाकारों का ऑडिशन रखा गया था। सामने वाली सीट पर खुद प्रेमनाथ गहरी नज़र गढ़ाए बैठे हुए थे। एक-एक कलाकार मंच पर आते जा रहे थे। जब मनोहर महाजन की बारी आई तो वे अपने गुरू राम सिंह गोंटिया के दिए गए संस्‍कार के मुताबिक मंच पर साष्टांग लेट गए। वहीं दूसरे कलाकार मंच को छूकर हाथों को माथे से लगाते थे। 

प्रेमनाथ ने आंखें गढ़ाए इस नजारा को देखा कि एक कलाकार मंच पर आने से पहले उसे साष्टांग दंड प्रणाम कर रहा है। वे कुर्सी में बैठे हुए चिल्‍लाए- ‘बाबू….बाबू….बस तुम्‍हारा ऑडिशन हो गया। कुछ करने की जरूरत नहीं है।’ मनोहर महाजन हैरान रह गए कि जब उन्‍होंने कुछ किया ही नहीं तो ऑडिशन कैसे हो गया ? प्रेमनाथ ने कहा कि जिस कलाकार का मंच के प्रति ऐसा समर्पण हो, उसका अभिनय देखने की जरूरत ही नहीं है। ‘मीरा’ फिल्‍म में मनोहर महाजन का चयन हो गया, लेकिन प्रेमनाथ की अचानक बढ़ती व्‍यस्‍ताओं के कारण यह फिल्‍म आगे बढ़ नहीं पाई।