शहीद सीएस राठौड़ फाउंडेशन, राजस्थान साहित्य अकादमी, दिल्ली एवं अनुविंद पब्लिकेशंस उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में साहित्य, कला, सांस्कृतिक का संगम मेदपाट-2023 का दो दिवसीय महोत्सव विज्ञान समिति, उदयपुर में प्रारंभ हुआ। पहले दिन राजस्थानी मांडणा प्रतियोगिता, राजस्थानी मेहंदी प्रतियोगिता और राजस्थानी कैणी (वात) प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि नीता मेहता, अध्यक्षता शिखा सक्सेना उपनिदेशक पर्यटन उदयपुर एवं मुख्य अतिथि डॉ नीता मेहता, अध्यक्ष यूडबल्यूसीसीआई और विशिष्ट अतिथि डॉ ममता धूपिया एमडी हैलो किड्स थीं। तीनों प्रतियोगिताओं में लगभग साठ महिलाओं व किशोरियों ने भाग लिया, जिनकी वयः 15 से 75 वर्ष तक थी। सभी ने बहुत हर्ष व उल्लास से सहभागिता निभाई।
प्रथम दिन के कार्यक्रम का संयोजन जया चौहान, डॉक्टर करुणा दशोरा, रेणु देवपुरा, डॉक्टर सिम्मी सिंह, डॉक्टर प्रियंका भट्ट, सुनीता निमिष, स्वाति शकुन्त, महेंद्र साहू, सोम शेखर व्यास, महेंद्र सिंह राणावत ने किया। वहीं निर्णायक की भूमिका अशोक जैन मंथन, डॉक्टर तरुण दाधीच, शिव कुंवर झाला, रुक्मण राठौड़, बीना चित्तोड़ा, दीपा पंत शीतल, डॉक्टर निर्मला शर्मा, रेणु राठौड़, बृज राज सिंह जगावत, मनोहर सिंह आशिया, पूनम भू, हँसा रविन्द्र ने निभाई।
महोत्सव के दूसरे दिन राजस्थानी जनजातीय साहित्य परिसंवाद का आयोजन हुआ। जिसमें कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र का आरंभ शिखा बावरा, भार्गवी मेहता द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ तत्पश्चात कार्यक्रम की निदेशक डॉ अनुश्री राठौड़ द्वारा स्वागत उदबोधन दिया गया। कार्यक्रम का बीज वक्तव्य मधु आचार्य आशावादी ने दिया। मुख्य अतिथि डॉ देव कोठारी ने राजस्थानी आदिवासी साहित्य संरक्षण पर अपनी बात रखी तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. केएल कोठारी ने की। संचालन डॉ कुंजन आचार्य ने किया।
प्रथम सत्र में प्रथम सत्र के अतिथियों के स्वागत पश्चात गजेसिंह राजपुरोहित द्वारा राजस्थानी आदिवासी मौखिक साहित्य पर एक समग्र शोध पत्र पढा गया तथा डॉ दीप्ति पण्ड्या द्वारा राजस्थानी आदिवासी लिखित साहित्य और प्रमुख पोथियों पर आलेख पाठ किया गया। इसी कड़ी में कपिल पालीवाल ने भी अपने आलेख पाठ में राजस्थान की आदिवासी बोली और भाषा पर प्रकाश डाला। साहित्य व संस्कृति के इस अद्भुत संगम को और अधिक यादगार बनाते हुए डॉ दीप्ति पण्ड्या व डॉ सीमा राठौड़ की पुस्तक वागड़ के लोक सुर का विमोचन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वागड़ साहित्य के जानकार व युगधारा साहित्यिक संस्था के संस्थापक डॉ ज्योतिपुंज पण्ड्या ने की तथा संचालन डॉ करुणा दशोरा द्वारा किया गया।
इसके बाद राजस्थानी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र बारहठ की अध्यक्षता में द्वितीय सत्र प्रारंभ हुआ। इस सत्र में भील साहित्य में लोकगीतों का महत्व बताते हुए संजय शर्मा ने आलेख पाठ किया तथा दिनेश पांचाल ने अपनी कहानी के माध्यम से आदिवासी मेलों व उस अंचल के स्वभाविक प्रेम व जीवन परिदृश्य की कहानी का वाचन किया तो रेखा खराड़ी ने अपनी वागड़ी भाषा में लिखी कविताओं के माध्यम से आदिवासी संस्कृति व लोक भाषाओं के प्रति अपने स्नेह को व्यक्त कर खूब तारीफ बटोरीं। सत्र के अंतिम दौर में अध्यक्षी उदबोधन हुआ जिसमें साहित्यकार राजेंद्र बारहठ ने आदिवासी साहित्य संरक्षण और संरक्षण के लिए हुए विभिन्न योगदानों पर प्रकाश डालते हुए राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने की मांग की। सत्र का संचालन आशा पांडे ओझा ने किया।
द्वितीय सत्र के पश्चात परिसंवाद के समापन सत्र की शुरुआत हुई, जिसकी शुरुआत करते हुए मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि केंद्रीय साहित्य अकादमी के 24 भाषाओं के इतिहास में पहली बार आदिवासी साहित्य के लिए यह अनूठा कार्यक्रम उदयपुर के शहीद सीएस फाउंडेशन की सहभगिता से हुआ है। अध्यक्ष देव कोठारी ने भी मेदपाट महोत्सव को खूब सराहा। इसके पश्चात सुर संगम संस्थान की रेणु गोरेर ने अपने संस्थान के बच्चों के साथ अतिसुन्दर कत्थक, कालबेलिया नृत्यों की प्रस्तुति देकर दर्शकों का मंत्र मुग्ध कर दिया, समस्त हाल तालियों से गुंजायमान हो उठा, सुर संगम संस्थान की रेणु गोरेर के निर्देशन में ये सभी 11 बालिकाएं मलेशिया में हमारी संस्कृति व कला का परचम फहराते हुए कुल ग्यारह अवार्ड जीत कर आईं। मेदपाट व शहीद सीएस राठौड़ फाउंडेशन ने रेणु देहलवी सुरसँगम संस्थान की निर्देशक को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिये संस्थान को बधाई देते हुवे, नृत्य निर्देशिका कार्यक्रम संयोजक रेणु गोरेर का नागरिक अभिनंदन किया। केंद्रीय अकादमी से प्रतिनिधि के तौर पर पधारे अमित कुमार जी का भी अभिनंदन किया गया। इस सत्र का संचालन संजय पुरोहित बीकानेर ने किया।
समापन सत्र में शहीद चंदन सिंह राठौड़ की स्मृति में साहित्य पुरोधा सम्मान डॉ ज्योतिपुंज, संत साहित्य सम्मान पुष्कर गुप्तेश्वर, संस्कृति सम्मान शारदा देहलवी और कला सम्मान चेतन औदिच को प्रदान किया गया। इस सत्र का संचालन किरण बाला किरण ने किया। कार्यक्रम का आखिरी व समापन सत्र राजस्थानी कविता के नाम रहा, इस सत्र के मंचासीन मेहमान पण्डित नरोत्तम व्यास, श्रेणीदान चारण, घनश्याम नाथ कच्छावा थे।
इस अवसर पर राजस्थानी काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें बाहर से पधारे व नगर के गणमान्य साहित्यकारों ने भाग लिया। साहित्यकार ज्योतिपुंज, राजेंद्र बारहठ, अशोक जैन मंथन, घनश्याम नाथ कच्छावा, संजय पुरोहित, श्रेणीदान चारण, नरोत्तम व्यास, मोहन जाट, कपिल पालीवाल, पुष्कर गुप्तेश्वर, शैलेन्द्र ढड्ढा, आशा पांडे ओझा, डॉ करुणा दशोरा, शैल कुंवर, सोमशेखर व्यास, डॉ प्रियंका भट्ट, अनिता अन्ना, महेंद्र शाहू, लोकेश चौबीसा, उपवन पंड्या ने मायड़ बोली में विविध रसों की मीठी रचनायें सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। सारे कवियों ने खूब सराहना व तारीफ बटोरी। गोष्ठी का संचालन डॉक्टर उपवन पण्ड्या उजाला ने किया। ततपश्चात सभी कवियों का स्मृति चिन्ह, उपरणा व अभिनंदन पत्र से हिम्मत सिंह झाला, फतेह सिंह राठौड़, चन्द्र कुंवर राणावत, सुरेश कुमार साल्वी द्वारा सम्मान किया गया।
दूसरे दिन के समस्त सत्रों का संयोजन शिल्पी पांडेय, आशा पांडेय ओझा, किरण बाला किरण, शीतल श्रीमाली, अनुविन्द सिंह राठौड़, ज्योति चौहान, नरेंद्र सिंह राठौड़, सुरेंद्र सिंह राठौड़, मीना कुंवर, कमला कुंवर द्वारा किया गया। कार्यक्रम का छाया चित्रांकन कुशल छाया चित्रकार नमन शर्मा द्वारा किया गया। कार्यक्रम की मीडिया प्रभारी शिल्पी पांडे थीं। रात 11 बजे दो दिवसीय इस कार्यक्रम का विधिवत समापन हुआ।